राजा बेणु के मंदिर में लोगों की है अटूट आस्था

संवाद सूत्र, टेढ़ागाछ (किशनगंज) : प्रखंड से 12 किलोमीटर जिला मुख्यालय 40 किलोमीटर दूर टेढागाछ प्रखंड के नेपाल की तरफ स्थित राजा बेणु से जुड़ा बेणुगढ़ का पौराणिक इतिहास चर्चा में रहा है। महाभारत काल में पांडवों के गुप्त वास से भी इस क्षेत्र का गहरा रिश्ता रहा है। बेणुगढ़ आज भी गढ़ के टीला एवं भग्नाविषेश राजा बेणु का मंदिर क्षेत्र के दोनों समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है। जहां प्रत्येक वर्ष अप्रैल में एक वैशाखी पर्व राजा बेणु के मंदिर में एवं गढ़ में विराट एक दिवसीय मेला 15 अप्रैल को आयोजन होता है। जिसमें दोनों समुदाय के लोग भारी संख्या में शरीक होते हैं।


राजा बेणु के मंदिर में लोगों की इतनी अटूट आस्था है, कि निसंतान एवं रोगी की मुराद पूरी होने पर कबूतर, छागर की बलि देने वाले हजारों की संख्या में पहुंचते हैं। 180 एकड़ में फैला राजा बेणु का टीला आज खंडहर में तब्दील होकर अतिक्रमण का शिकार हो रहा है। यहां आज भी ऐसी मान्यताएं है की गढ़ की रखवाली अ²श्य आत्माएं करती है। गढ़ के पूरब दिशा में विशाल सूखा तालाब की मौजूदगी इन सब का आभास कराती है। यहां के लोग बेणु राजा को ग्रामीण देवता के रूप में सदियों से मान्यता देते आ रहे हैं। यहां से जुड़ी एक और पुरानी मान्यता को लोग आज तक स्मरणीय बनाए हुए हैं, जिसमें गढ़ के अंदर सूखे तालाब के संबंध में मान्यता है कि तालाब के किनारे पान सुपारी पूजन करने से शादी-विवाह एवं अन्य अनुष्ठानों में बर्तन की मांग करने पर इस तालाब से कालांतर में पीतल के बर्तन की प्राप्ति एक चमत्कार के रूप में होती थी, जिसके उपयोग के बाद लोग वापस तालाब को समर्पित करते थे। पुरातत्व विभाग की निगाह से दूर बेणु महाराज की इस धरोहर को आज तारणहार की जरूरत है।

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