बदल गया सत्र बच्चों को नहीं मिल पाई हैं नई किताबें

संवाद सूत्र, छातापुर (सुपौल): कोरोना वायरस से उबरने पर सरकारी विद्यालय भले ही खुल गए हों, लेकिन नौनिहालों को नई पुस्तकें नहीं मिल सकी हैं। नये सत्र को एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी वह पुरानी व पिछली कक्षा की किताबों के जरिये शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यह हालात एक दो विद्यालय के नहीं बल्कि प्रखंड के सभी विद्यालयों के बने हुए हैं। इससे नौनिहाल पुरानी किताबों के जरिये नई शिक्षा लेने को मजबूर हैं। सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले नौनिहालों को प्रत्येक शैक्षिक सत्र में सरकार द्वारा निशुल्क पाठ्य पुस्तकें दी जाती रही है। लेकिन, अब पाठ्य पुस्तकों की जगह उतनी राशि अभिभावकों के बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से सीधे हस्तांतरित की जाती है। लेकिन अब नई मुसीबत यह है कि पैसे मिलने के बाद भी बच्चे किताब खरीद नहीं रहे हैं अभिभावक इन पैसों से अपनी दूसरी जरूरतें पूरी कर रहे हैं।


शिक्षक नरेश कुमार निराला ने कहा कि पिछले वर्षों में कई चरणों में पुस्तकें आ जाती थी। इससे नौनिहाल अपनी पढ़ाई शुरू कर देते थे। लेकिन अब अभिभावकों के खाते में राशि आती है। बच्चों को समय से पुस्तकें उपलब्ध कराना अभिभावकों की जिम्मेदारी भी है। बच्चे पुस्तकों के लिए आस लगाए रहते हैं। कई जगहों पर बिना किताबों के ब्लैकबोर्ड पर ही पढ़ाई कराई जा रही है। सरकार ई कंटेंट के माध्यम से पढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन इसे भी लेकर सवाल उठ रहे हैं कि जब गरीब बच्चों के परिवार के पास मोबाइल, लैपटॉप या टैब नहीं हैं तो ई कंटेंट से पढ़ाई कैसे होगी। उन्होंने मुख्यमंत्री, प्रधान सचिव, अपर मुख्य सचिव, शिक्षा मंत्री आदि को पत्र लिखकर बच्चों को सीधे पुस्तक उपलब्ध कराने की मांग की है। कहा कि अधिकांश बच्चे या उनके अभिभावक पढ़ने के लिए किताब नहीं खरीद रहे हैं। इससे पठन पाठन में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

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