स्कूली वाहनों पर प्रशासन मेहरबान, सांसत में नौनिहालों की जान

फोटो 5 जमुई 15

- मापदंडों को नजरअंदाज कर नौनिहालों की जिदगी से खिलवाड़ कर रहे विद्यालय प्रबंधक
- स्कूली वाहन के रूप में 90 फीसदी अनुपयुक्त वाहनों का हो रहा प्रयोग
संवाद सहयोगी, जमुई : निजी विद्यालयों में बेहतर शिक्षा का सपना देख रहे अभिभावकों के बीच नौनिहालों के लिए शिक्षा से कहीं ज्यादा इनकी सुरक्षा का सवाल अहम हो गया है। शिक्षा विभाग की उदासीनता एवं प्रशासन की मेहरबानी का आलम यह है कि जिले में खटारा एवं अनुपयुक्त वाहनों के सहारे नौनिहालों को सुरक्षित विद्यालय पहुंचाने तथा लाने का कार्य किया जा रहा है। यह तब है जब सर्वोच्च न्यायालय एवं बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा स्कूली वाहनों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किया जा चुका है। जिले में परिचालित स्कूली वाहनों में सुरक्षा को लेकर बाल अधिकार संरक्षण आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश जिला प्रशासन एवं परिवहन विभाग की मेहरबानी के कारण फाइलों में गुम है। विद्यालय प्रबंधन द्वारा निर्धारित मापदंडों को ताक पर रख कर खटारा एवं अनुपयुक्त वाहनों को स्कूली वाहन के रूप में प्रयोग कर एक ओर जहां बच्चों की जिदगी को सांसत में डाला रहा है वहीं दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय एवं बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आदेश एवं दिशा-निर्देशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। स्कूली वाहनों में सुरक्षा के मापदंडों की अनदेखी नौनिहालों की जिदगी पर भारी पड़ने के साथ-साथ हादसे को खुलेआम आमंत्रण दिया जा रहा है।

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स्कूली वाहनों के तहत नहीं है निबंधन
निजी विद्यालय में संचालित स्कूली वाहनों को निर्धारित मापदंड के तहत परिवहन विभाग में निबंधित नहीं कराया गया है बल्कि निजी अनुपयुक्त वाहनों को स्कूली वाहन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। जिला परिवहन कार्यालय द्वारा प्राप्त आंकड़े के अनुसार जिले में स्कूली वाहन के तहत महज चार से पांच बसों का निबंधन कराया गया है। जबकि जिले में निजी विद्यालयों द्वारा सैकड़ों की संख्या में स्कूली वाहनों का परिचालन किया जा रहा है।
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90 फीसदी वाहनों में नहीं हो रहा मापदंडों का पालन
नौनिहालों की सुरक्षा को लेकर बाल अधिकार संरक्षण आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्कूली वाहनों के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किया गया है। परंतु स्कूली वाहनों पर प्रशासन की मेहरबानी एवं परिवहन विभाग की उदासीनता के कारण सारे दिशा-निर्देश फाइलों में सिमट कर रह गई है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले की विगत दिनों के घटित घटना देश के अभिभावकों का दिल झकझोर दिया है। जो प्रशासनिक उदासीनता का सबसे बड़ा मिसाल है। निर्धारित मापदंड के अनुसार स्कूली वाहनों में प्राथमिक चिकित्सा उपचार, फायर सेफ्टी सिस्टम, जीपीएस सिस्टम से लेकर वाहनों की गति नियंत्रण को लेकर एसएलडी यानी स्पीड लिमिट डिवाइस लगाना अनिवार्य है।
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सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश
-स्कूली वाहनों में सीट क्षमता से अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए।
- स्कूली बसों की खिड़कियों में हारिजेंटल ग्रिल एवं लोहे की जाली का लगाना अनिवार्य है।
- स्कूली वाहन पीले रंग का होना एवं स्कूल का नाम और फोन नंबर लिखा होना अनिवार्य है।
- बस में सीट के नीचे बैग रखने की व्यवस्था किया जाना है ।
- स्कूली वाहनों में महिला केयर टेकर का होना अनिवार्य है जो बच्चों पर नजर रख सके।
- वाहन चालकों को कम से कम 5 वर्ष का भारी वाहन चलाने का अनुभव हो।
- वाहन चालक एवं कंडक्टर का पुलिस वेरीफिकेशन होना अनिवार्य है।
- स्कूली वाहनों में जीपीएस, सीसीटीवी व स्पीड गर्वनर का लगाना अनिवार्य है।
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कोट:-
परिवहन विभाग द्वारा स्कूली वाहनों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जा रही है। जल्द ही बैठक कर विद्यालय प्रबंधकों को हिदायत दी जाएगी। इसके बावजूद भी उल्लंघन करने पर विशेष अभियान चलाकर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कुमार अनुज, जिला परिवहन पदाधिकारी, जमुई
-- सर्वोच्च न्यायालय एवं केंद्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर जारी दिशा-निर्देश का अनुपालन कराना जिला परिवहन पदाधिकारी का दायित्व है। आदेशों की अवहेलना करने वाले स्कूली वाहनों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। प्रमोद यादव, सचिव, बिहार अभिभावक महासंघ।

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