अब तक महज एक केंद्र पर खरीद हो सकी है 10 एमटी गेहूं

जागरण संवाददाता, सुपौल : गेहूं खरीद के लिए सरकार ने 31 मई तक का समय निर्धारित किया है। पंचायत स्तर पर खरीद के लिए पैक्सों तथा प्रखंड स्तर पर व्यापार मंडलों का चयन किया गया है। 20 अप्रैल से खरीदारी करने का आदेश निर्गत हुआ था फिर भी गेहूं की खरीद नाम मात्र भी नहीं हुई है। आलम यह है कि पैक्स अध्यक्ष भी अपने खेतों के गेहूं सरकारी दर पर नहीं बेच रहे हैं। जबकि पिछले साल अपने सगे-संबंधियों तथा स्वजनों के नाम पर खरीद के शुरुआती दिनों में ही गेहूं की खरीद कर लिए थे। इस साल खुले बाजार में गेहूं का मूल्य कटाई के समय खेतों में ही 1950 से शुरू हुआ था। जो कभी घटकर 1900 तथा बढ़कर 2100 तक हो रहा है। सरकारी दर 2015 रुपये प्रति क्विटल सरकार ने तय कर रखा है। ऐसे में कोई भी किसान सरकारी संस्थाओं में गेहूं बेचने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। गेहूं खरीद के लिए आवेदन आनलाइन करने के बावजूद किसी ने सरकारी स्तर पर इसकी बिक्री नहीं की है। अभी तक महज सदर प्रखंड के चार किसानों ने 10 एमटी गेहूं बेचा है जबकि अन्य प्रखंड में कोई भी किसान क्रय केंद्र पर पूछताछ करने भी नहीं गया है। केंद्रों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। किसानों ने अपना गेहूं घरों में भी नहीं रखा है कटनी बाद खेतों से ही गेहूं व्यापारियों के हाथ बेच दिया है।

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116 क्रय केंद्रों पर महज 10 एमटी गेहूं हुई है खरीद
गेहूं खरीद को लेकर जिले में 116 केंद्र बनाए गए हैं जिसमें 115 पैक्स तथा एक व्यापार मंडल को इसके लिए स्वीकृति प्रदान की गई है। केंद्र पर गेहूं खरीद का बैनर टांग कर किसानों का इंतजार किया जा रहा है फिर भी किसान इन जगहों पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। बताया जा रहा है कि गेहूं का बाजार मूल्य सरकारी मूल्य से अधिक है। ऐसे में किसान अपने दरवाजे से ही उनकी बिक्री करना मुनासिब समझ रहे हैं। आलम है कि 116 केंद्र में से सिर्फ एक केंद्र पर मात्र 10 एमटी गेहूं की खरीद हुई है। 20 अप्रैल से गेहूं खरीद की शुरुआत की गई थी जो 31 मई तक चलने वाली है। गेहूं खरीद करने की निर्धारित समय-सीमा का लगभग 22 दिन गुजर गए हैं केंद्रों पर बिक्री करने वाले किसान अभी तक नहीं पहुंच रहे हैं।
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जिले को 26 हजार एमटी का है लक्ष्य
जिले को 26 हजार एमटी गेहूं खरीदने का लक्ष्य मिला है। लक्ष्य के मुताबिक मात्र 10 एमटी गेहूं अभी तक खरीद हो पाई है। किसान बताते हैं कि जब गेहूं का बाजार मूल्य समर्थन मूल्य से अधिक है तो आखिर कौन इस झमेल में पड़ना चाहेगा। एक तो अनाज को केंद्र तक ले जाने का खर्च किसानों को वहन करना होगा और प्रति क्विटल दो बोरा भी लगेगा। फिर पैक्स अध्यक्षों की मनमानी किसानों को अलग से झेलनी पड़ेगी। ऐसे में बाजार मूल्य ही किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।

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