बायोफ्लाक तकनीक से मछली पालन कर किसान बढ़ाएं अपनी आय

जागरण संवाददाता, बिहारशरीफ : मछली की बढ़ती मांग को देखते हुए मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए नई-नई तकनीक अपनाने पर मत्स्य पालक जोर दे रहे हैं। इसके लिए सबसे बेहतर विकल्प है कम पानी, कम खर्च तथा थोड़े जगह में मछली पालन करने के लिए बायोफ्लाक तकनीक। यह मछली पालन का आधुनिक व वैज्ञानिक तरीका है। इसको अपनाकर किसान नीली क्रांति का अग्रदूत बन सकता है। यह जानकारी मंगलवार को डीएओ संजय कुमार ने दी। उन्होंने बताया कि बायोफ्लाक तकनीक से मछली पालन करने के लिए तालाब खुदवाने की जरूरत नहीं है। खेत या घर के आसपास 250 स्क्वायर फीट का सीमेंट टैंक में मछली पालन किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस विधि से मछली पालन करने के इच्छुक किसान मत्स्य विभाग से संपर्क कर सकते हैं।


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मछली के चारे पर खर्च होता है आधा लागत मछली टैंक में पालने पर वह जो खुराक खाती है उसका 75 प्रतिशत वेस्ट निकालती है। वह वेस्ट उस टैंक के पानी के अंदर रहता है और उसी वेस्ट को शुद्ध करने के लिए बायोफ्लाक का इस्तेमाल किया जाता है। उस वेस्ट में बैक्टिरिया होता है जो इस वेस्ट को प्रोटीन में बदल देता है। उसको मछली पुन: खुराक के रूप में खाती है। इस तरह पालक को चारा में आधा खर्च आता है।
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टैंक बनाने पर खर्च 250 स्क्वायर फीट का एक टैंक बनाने पर अमुमन 30 से 50 हजार रुपए खर्च आता है। इसमें जरूरी उपकरण तथा लेबर चार्ज शामिल हैं। टैंक की साइज जितना बढ़ेगा उसकी लागत बढ़ता जाएगा। 250 स्क्वायर फीट के एक टैंक में एक साल में 12 सौ किलो तक मछली उत्पादन होता है। एक टंकी चार मीटर व्यास में बनाई जाती है। मात्र चार डिसमिल यानी 918 वर्गफीट जमीन में छह टंकियां बनाई जा सकती है। इसको बनाने में लगभग तीन लाख रुपए खर्च आ सकता है।
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बायोफ्लाक तकनीक से मछली पालन को 24 घंटे बिजली की दरकार बायोफ्लाक तकनीक से टैंक में मछली पालन करने के लिए 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। क्योकि इसमें जो बैक्टिरिया पलता है वो ऐरोबिक बैक्टिरिया है। इस बैक्टिरिया को एक्टिव रखने के लिए 24 घंटे हवा की जरूरत होती है तभी वह जीवित रहता है। बिजली कटौती की समस्या अगर मछली पालक को महसूस होता है तो वह इनवर्टर के जरिए भी टैंकों में बिजली सप्लाई कर सकता है।
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कम लागत व कम पानी में ज्यादा कमाई कर सकता है मछली पालक चार मीटर व्यास की एक टैंक में साल में कम से कम 12 सौ किलो मछली उत्पादन किया जा सकता है। इस टैंक में सिधी, पंगास, तिलापिया, देशी मांगूर, रोहू या कतला किसी एक प्रवेध की मछली पाला जा सकता है। यह सभी मछली बाजार में दो सौ रुपए किलो बिकती है। मछली विशेषज्ञों की मानें तो 10 हजार लीटर पानी तीन से चार महीने में पांच से छह क्विटल मछली उत्पादन किया जा सकता है। यह खेती किसानी के साथ मछली पालन करने का सबसे बेहतर तरीका है।

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