डीएम ने दिया निर्देश, बड़े निजी विद्यालयों की जांच करेंगे डीइओ

जागरण संवाददाता, खगड़िया: अब निजी विद्यालयों की मनमानी नहीं चलेगी। शिकंजा कसने की तैयारी शुरू हो गई है। डीएम आलोक रंजन घोष इसको लेकर सख्त दिख रहे हैं। डीएम

ने निजी विद्यालयों में नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 एवं बिहार राज्य बच्चों की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा नियमावली, 2011 के संगत प्रावधानों के आलोक में अलाभित समूह एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर समूह के बालकों के नामांकन में आरक्षण संबंधी नियमों के उल्लंघन एवं निजी विद्यालयों द्वारा मनमाना रवैया अपनाने के संबंध में प्राप्त हो रही शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए इसकी जांच हेतु जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं शिक्षा विभाग के अन्य पदाधिकारियों को निर्देशित किया है। डीएम ने डीइओ को निर्देशित किया है कि वे स्वयं जिले के सभी बड़े निजी विद्यालयों में भ्रमण कर प्राप्त शिकायतों की जांच करेंगे। छोटे विद्यालयों, जिनमें छात्रों की संख्या कम है, वहां पर जिला कार्यक्रम पदाधिकारी एवं प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी जांच करेंगे। जांच के दौरान यह पता किया जाएगा कि वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2022- 23 में किन विद्यार्थियों का नामांकन उक्त अधिनियम एवं नियमावली के प्रावधानों के तहत लिया गया है। जांच के क्रम में इन विद्यार्थियों का पता भी प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है। जानिए प्रावधान को विदित हो कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 एवं इस पर आधारित बिहार राज्य बच्चों की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा नियमावली, 2011 के प्रावधानों के तहत छह वर्ष से 14 वर्ष तक के आयु के सभी विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध किया गया है। इनमें स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि कोई विद्यालय पहली कक्षा में आसपास के दुर्बल वर्ग एवं अलाभित समूह के बालकों को, उस कक्षा के बालकों की कुल संख्या के कम से कम 25 प्रतिशत की सीमा तक प्रवेश देगा और नि:शुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उसकी पूर्णता तक प्रदान करेगा। यदि किसी विद्यालय में पूर्व प्राथमिक कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है, तो इस मानक का अनुपालन पूर्व प्राथमिक कक्षा के लिए भी किया जाएगा। विद्यालय द्वारा किसी भी प्रकार का कैपिटेशन फीस भी प्राप्त नहीं किया जाएगा तथा किसी भी बच्चा, उसके माता-पिता या अभिभावक का स्क्रीनिग टेस्ट नहीं लिया जाएगा। अलाभित एवं दुर्बल समूह के बालक में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े समूह, आर्थिक रूप से कमजोर समूह के बालक सहित निशक्त बालक भी शामिल हैं।
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जिलाधिकारी ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि यदि निजी विद्यालयों की जांच में यह पाया जाता है कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 एवं बिहार राज्य बच्चों की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा नियमावली, 2011 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए नामांकन किया गया है अथवा उक्त अधिनियमों के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया है, तो ऐसे निजी विद्यालयों पर सुसंगत प्रावधानों के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

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