जीएमसीएच में चिकित्सा सुविधाओं का टोटा, मरीजों का टूट रहा भरोसा

दीपक शरण, पूर्णिया। मरीज उम्मीद के साथ अस्पताल पहुंचते हैं लेकिन अब यहीं से नाउम्मीद होकर लौटना पड़ रहा है। राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल अभी मूर्त रूप ले ही रहा है लेकिन विगत कुछ माह से यहां पर चिकित्सा सुविधाओं का टोटा है। आम मरीजों का अस्पताल से भरोसा टूट रहा है।

पिछले माह में मरीजों के आवक में भी कमी हो रही है। ओपीडी से लेकर प्रसव वार्ड में मरीजों की संख्या में खासी कमी हुई है। बहुत पीछे में झांकने की आवश्यकता नहीं है महज दो माह के दौरान ही तुलनात्मक आंकड़े से इस बात पुष्टि होती है। अब लोगों का भरोसा इस अस्पताल से खत्म हो रहा है। मार्च और अप्रैल माह में दो हजार मरीजों की ओपीडी में कमी होने से भरोसा टूटने की कहानी बयान करती है। कहती है। मार्च में 18 हजार 217 मरीजों को ओपीडी में लाभ मिला था लेकिन अप्रैल माह में महज 16 हजार 752 मरीजों ने उपचार करवाया। इस आंकड़े के पीछे की सच्चाई और भी खतरनाक है। वैसे मरीज जिन्होंने उपचार करवाया उनको यहां से दवा आधी -अधूरी मिली और जांच की सुविधा भी नहीं मिली। काफी समय से पैथोलाजिकल जांच काफी कम हो रहे हैं। एक्सरे और अल्ट्रासाउंड जैसी सुविधा के लिए बाहर भटकना पड़ता है। प्रसव के लिए सिजेरियन के आंकड़े इस बात की पुष्टि करने के लिए काफी साबित होगी। अब यहां से मरीजों भरोसा एक -एक कैसे टूट रहा है। कभी लक्ष्य प्रमाणपत्र प्राप्त माडल लेबर रूम में लगातार सिजेरियन और बेहतर प्रसव सुविधाएं मिलने से संस्थागत प्रसव में बढ़ोत्तरी हुई थी अब स्थिति इसके उलट है। मार्च माह में 76 सिजेरियन हुए थे जो अप्रैल माह में घट कर आधे यानि 41 पर पहुंच गया। वंदना देवी ने बताया कि यहां एक तो सिजेरियन का मामला आते ही रेफर किया जाता है। अगर सिजेरियन हुआ भी तो उसके बाद देखभाल का स्तर काफी निम्न है। सामान्य प्रसव भी जो एक माह मे 700 के आसपास था अब महज अप्रैल माह में 423 और मार्च माह में 544 पर पहुंच गया है। यहां अल्ट्रासाउंड समेत तमाम जांच की सुविधा का अभाव और मौके पर चिकित्सक के नहीं पहुंचने के कारण लोग उपचार करवाने से हिचक रहे हैं।
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कुल प्रसव की बात की जाए तो मार्च माह में 620 जबकि अप्रैल माह में 464 था।
यही कहानी अन्य सुविधाओं का भी है। एसएनसीयू वार्ड की सुविधा के लिए अस्पताल की नर्स को पुरस्कृत किया जा चुका है। अब यहां पर भर्ती बच्चों की संख्या लगातार कम हो रही है। मार्च में 63 बच्चे भर्ती थे जबकि अप्रैल में 46 बच्चों की भर्ती कर उपचार हुआ। यह आंकड़ा पहले की तुलना में चालीस फीसद कम बताया जाता है। एसएनसीयू आउटबर्न बच्चे की संख्या मार्च में 197 था। अप्रैल में 178 रहा। कुल भर्ती बच्चे मार्च में 260 तो अप्रैल माह में 224 तक पहुंच गया। सबसे खराब हालत परिवार नियोजन आपरेशन का है। मार्च माह में 50 परिवार नियोजन आपरेशन जबकि अप्रैल में महज 11 हुआ। माइनर आपरेशन और मेजर आपरेशन की कहानी इससे अलग नहीं है।
जीएमसीएच जैसे बड़े अस्पताल में एक माह में महज 214 माइनर आपरेशन हुए। मेजर आपरेशन की संख्या महज 28 है। इस आंकड़े से अब इस बात की पुष्टि होती है गरीब से गरीब मरीजों का भी अब जीएमसीएच से भरोसा टूटता जा रहा है। मजबूरी और विवशता में ही लोग इस अस्पताल का रुख करते हैं। सोमेश मंडल ने बताया कि भर्ती हो जाओ आपरेशन होगा उसके बाद चिकित्सक ही देखने नहीं आते थे। लाचार होकर बाहर निजी संस्थान में आपरेशन करवाना पड़ा।
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