अभियान:::: बरसात में शहरी क्षेत्र से जल निकासी नप के लिए होगी बड़ी चुनौती

जागरण संवाददाता, सुपौल: शहरीकरण के दौर में बढ़ती आबादी और बेतरतीब तरीके से नए बसावटों के बीच जलजमाव जहां एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रहा है वहीं जलनिकासी एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है। अधिकांश शहरों की स्थिति एक जैसी है। अब सुपौल शहर भी इस समस्या से अछूता नहीं रहा। विगत दो-तीन वर्षों की स्थिति को पलटकर देखते हैं तो बारिश के मौसम में शहर की स्थिति नारकीय बन जाती है। अधिकांश सरकारी कार्यालय, बीएसएस कॉलेज, डिग्री कॉलेज, पावर ग्रिड, सुपौल उच्च माध्यमिक विद्यालय सुपौल का परिसर व मैदान, गांधी मैदान के साथ-साथ शहर के कई वार्ड व निचले हिस्से जलजमाव की चपेट में आने लगे हैं। और तो और समाहरणालय परिसर तक में जलजमाव हो जाया करता है। पुराना पुलिस लाइन, पावर ग्रिड, पीईबी गोदाम का परिसर के साथ-साथ सुधा डेयरी के इर्द-गिर्द बाढ़ सा नजारा दिखने लगता है। पुराने पुलिस लाइन जाने वाली सड़क पर लबालब पानी भर जाता है। ऐसे में असरदार साबित नहीं हो पा रही है नगर परिषद द्वारा निर्मित संरचनाएं।


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जल निकासी की है बड़ी परियोजना
शहर को जलजमाव के फजीहत से बचाने के उद्देश्य से बिहार शहरी आधारभूत संरचना विकास निगम (बुडको) के द्वारा स्ट्रॉम वाटर ड्रेनेज परियोजना के निर्माण की योजना बनी। सूबे के ऊर्जा मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव ने 06 मई 2018 को 22 करोड़ 08 लाख की लागत की इस परियोजना की आधारशिला रखी थी। परियोजना को पूरा करने का समय 18 माह निर्धारित किया गया था। चार वर्ष बीत जाने के बाद भी इसे पूरा नहीं किया जा सका है। परियोजना के तहत ड्रेनेज की कुल लंबाई 7.831 किलोमीटर की है। ड्रेनेज की चौड़ाई 02 मीटर एवं गहराई 01 मीटर होगी। परियोजना के तहत शहर की जल निकासी की व्यवस्था 02 स्थलों के माध्यमों से की जानी है। शहर के पानी को ड्रेनेज सिस्टम के माध्यम से गजना नदी एवं रेलवे लाइन के किनारे खाली स्थान जो धीमरा धार के पास होते हुए सिचाई नहर में गिराई जाएगी। दावा किया जा रहा है कि स्ट्रॉम वाटर ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद शहर में जलजमाव की समस्या नहीं रहेगी और लोगों को बरसात के दिनों में जलजमाव से फजीहत नहीं झेलनी होगी। कितु विडंबना है कि अब तक इसे पूरा नहीं किया जा सका है।
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कहते हैं लोग
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शहर के व्यवसायी दिनेश कुमार सिंह कहते हैं कि विकास के इस दौर में जल निकासी समस्या बनकर उभर रही है। नई आबादी नए क्षेत्रों में जो बस रही है वह बेतरतीब ढ़ंग से। जो निचला इलाका था जहां से शहर का पानी निकलकर जमा हो जाता था वहां अब आबादी बसने लगी है। वैसे अन्य वर्षों की तुलना में इस वर्ष नप कुछ सतर्क दिख रहा है। माइकिग कराकर लोगों को आगाह भी किया जा रहा है।
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संतोष प्रधान कहते हैं कि पूर्व में शहर के नाले की स्थिति को बेहतर नहीं कहा जा सकता। वार्डों में काम होना है तो नाला ही बना दिया गया। बजट के हिसाब से नाले बनाए गए। जितनी दूरी में बजट खत्म हो जाता नाला का निर्माण वहीं रुक जाता। शहर का बाहरी इलाका खाली था इसीलिए बारिश के कुछ घंटे बाद पानी निकल जाया करता था। लेकिन स्थिति अब इसके उलट है। उसी का नतीजा है कि अंदर के मुहल्लों की कौन कहे शहर के मुख्य जगहों पर भी जलजमाव हो जाया करता है जो कई दिनों तक बना रहता है।
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अभय मिश्रा का कहना है कि शहर विकास की ओर अग्रसर है। विकास के क्रम में कई तरह की परेशानी आती है। पहले रेलवे के किनारे से पानी निकलकर शहर के बाहर चला जाया करता था। अब रेलवे के अमान परिवर्तन के बाद समस्या खड़ी हुई है लेकिन नगर परिषद की सजगता देखकर ऐसा लगता है कि जल निकासी में कोई खास परेशानी नहीं होगी। नप द्वारा नाले की लगातार उड़ाही कराई जा रही है।
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संजय कुमार कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि शहर में नाला नहीं है। लगभग हर सड़क के किनारे नाला बना हुआ है। लेकिन आमलोगों के द्वारा या तो नाले का अतिक्रमण कर लिया गया है, या फिर नाले को भरकर उपर दूसरा कार्य कर लिया जा रहा है। बरसात के मौसम में नप ऐसे नालों की साफ-सफाई नहीं कर पाता और लोगों को जलनिकासी की समस्या झेलनी पड़ती है। पहले तो बाजार से पानी निकल जाया करता था लेकिन अब रेलवे के अमान परिवर्तन के बाद नप के सामने ये चुनौती होगी।
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गौरव कुमार का कहना है कि शहर में जहां-तहां आबादी बसती चली गई। आसपास ताल तलैया नहीं रहे जहां पानी का समावेश हो जाता था। गजना भी अब उस स्थिति में नहीं है कि शहर में लगे पानी को जगह दे सके। नगर परिषद को इसके लिए मास्टर पलान बनाना होगा तभी इसमें सफलता मिलेगी। वैसे बुडको का नाला चालू होने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

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