सदर अस्पताल में एंबुलेंस कर्मी करते ड्रेसिग, जीएनएम के जिम्मे पोस्टमार्टम की फाइल

जागरण संवाददाता, सुपौल: एक तरफ सरकार बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने का दावे कर रही है तो दूसरी तरफ अस्पतालों में अक्सर लापरवाही की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। ऐसे अस्पतालों में जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल भी एक है जहां डाक्टर के बदले कोई आम आदमी इलाज करता नजर आ जाए तो कोई हैरानी की बात नहीं। यहां की लचर व्यवस्था के चलते कब किस मरीज को क्या हो जाए कहना मुश्किल है। इस अस्पताल में एंबुलेंस कर्मी ड्रेसिग का काम करते हैं। उक्त कर्मी 102 एंबुलेंस पर ईएमटी है, लेकिन कभी मरीजों के साथ एंबुलेंस पर नहीं जाता। मोबाइल पर ही एंबुलेंस का कार्य संचालित होता है। हावभाव भी ऐसा कि हर कोई उसे अस्पताल का स्थायी कर्मी समझ बैठते हैं। आखिर हो भी क्यों नहीं, इसे इमरजेंसी के दवा का इंचार्ज भी बना दिया गया है। वैसे कागज पर दवा स्टोर का चार्ज किसी और को है, लेकिन स्टोर की चाभी इसी के पास रहती है। नतीजा है कि कई बार शाम के समय इमरजेंसी में कोई-कोई दवा खत्म हो जाती है और जब इसे फोन कर घर से बुलाया जाता है तब ये स्टोर से दवा निकाल कर देता है। अगर इस बीच किसी मरीज को दवा की जरुरत पड़ती है तो उसे दुकान से खरीदनी पड़ती है। बावजूद इसके वह दवा अस्पताल के दवा स्टोर में उपलब्ध रहती है।


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अस्पताल प्रशासन का है वरदहस्त
ड्रेसिग करने वाले ऐसे एंबुलेंस कर्मी को अस्पताल प्रशासन का वरदहस्त प्राप्त है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक बार जिलाधिकारी निरीक्षण करने आए। निरीक्षण के दौरान उक्त एंबुलेंस कर्मी के बारे में बताया गया कि यह एंबुलेंस का ईएमटी है और ड्रेसिग करता है। जिसके बाद जिलाधिकारी ने उसे हटाने एवं ड्रेसर को रखने के लिए कहा। विडम्बना है कि आज तक जिलाधिकारी के उक्त आदेश का पालन नहीं हुआ। अस्पताल प्रशासन आखिर क्यों इस एंबुलेंस कर्मी पर इतना मेहरबान है यह किसी को भी नहीं मालूम। इस एंबुलेंस कर्मी का अस्पताल में इतना दबदबा है कि अक्सर कई कर्मियों पर रौब दिखाते भी रहता हैं।
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जीएनएम से नहीं लिया जाता नर्सिंग का काम
सदर अस्पताल प्रशासन के ढुलमुल नीति का इससे बड़ा गवाह और क्या हो सकता है कि एंबुलेंस कर्मी से ड्रेसिग करवाया जाता है और जीएनएम से पोस्टमार्टम व इंजुरी की फाइल डील करवाई जाती है। मालूम हो कि डाक्टर व कर्मियों की हमेशा रोना रोने वाले इस सदर अस्पताल में 36 नियमित व 2 संविदा के जीएनएम कार्यरत हैं। बावजूद ड्रेसर की कमी को देखते हुए किसी से भी ड्रेसिग का काम नहीं लिया जाता है।
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कोट-
ड्रेसिग अस्पताल कर्मी को करना है, लेकिन एंबुलेंस ईएमटी अगर है तो उसे मदद कर सकता है। इसका पता करवा रहे हैं।
डा. इंद्रजीत प्रसाद,
सिविल सर्जन सुपौल

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