बायोडाटा का सत्यापन नहीं होने से पुस्तक की राशि से वंचित हैं दो हजार बच्चे

जागरण संवाददाता, सुपौल : सब पढ़े, सब बढ़े को सार्थक बनाने के लिए सरकार ने प्रारंभिक शिक्षा को शिक्षा का अधिकार का दर्जा दे रखा है। इसके तहत बच्चों को न सिर्फ निश्शुल्क शिक्षा दी जाती है बल्कि कई अन्य तरह की सुविधाएं भी उन्हें मुहैया कराई जाती है। परंतु सरकार की यह तमाम सुविधा उस समय बेमानी सी दिखती है जब बच्चों को समय से पाठ्य पुस्तक उपलब्ध नहीं हो पाता है। फिलहाल जिले के सरकारी विद्यालयों में पढ़ रहे पहली से आठवीं कक्षा के करीब दो हजार बच्चों को पाठ्य पुस्तक का इंतजार है। फिलहाल ऐसे बच्चों के पाठ्य पुस्तक की राशि पोर्टल के चक्कर में अटकी हुई है। दरअसल मेधा साफ्ट पोर्टल पर जितने बच्चों का नाम अंकित हैं उन सभी बच्चों का बायोडाटा का सत्यापन नहीं किया गया है। सत्यापन बाद ही डीबीटी के माध्यम से बच्चों के खाते में राशि भेजी जाती है। इस संबंध में जिला कार्यक्रम पदाधिकारी योजना लेखा का कहना है कि गर्मी की छुट्टी के कारण सत्यापन होने में विलंब हो रहा है। जल्द ही सत्यापन कर विभाग को भेज दिया जाएगा। इसके बाद बच्चों को डीबीटी के माध्यम से राशि उनके खाते में चली जाएगी तब जाकर बच्चे पाठ्य पुस्तक खरीद पाएंगे। अगले माह तिमाही परीक्षा होगी। बिना किताब के बच्चे क्या कुछ पढ़ पाएंगे इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

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4 लाख 15 हजार बच्चों का हुआ है सत्यापन
बच्चों में प्रारंभिक शिक्षा देने को लेकर जिले 1694 विद्यालय स्थापित हैं। इसमें 1071 प्राथमिक तथा 623 मध्य विद्यालय शामिल हैं। इन विद्यालयों में एक से कक्षा आठ तक के 4 लाख 17 हजार बच्चे नामांकित हैं। इनमें से अभी तक 4 लाख 15 हजार के करीब बच्चों का बायोडाटा का सत्यापन मेधा साफ्टवेयर पोर्टल के माध्यम से संभव हो पाया है। जिन बच्चों का यह सत्यापन नहीं हो पाया है वैसे बच्चों के पाठ्य पुस्तक की राशि का डीबीटी संभव नहीं होगा। परिणाम है कि ऐसे बच्चे आज भी इस राशि के इंतजार में हैं।
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पुस्तक के मूल्य के बराबर खाते में दी जाती है राशि
शिक्षा के अधिकार कानून के तहत कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को पाठ्य पुस्तक सरकार द्वारा दी जाती है। पहले बच्चों को पुस्तक ही दी जाती थी परंतु पिछले चार वर्षों से पुस्तक के बराबर राशि बच्चों के खाते में दी जाती है। इसके लिए विद्यालयों द्वारा तैयार मेधा साफ्ट पोर्टल पर बच्चों के बायोडाटा का सत्यापन अनिवार्य है। इस सत्यापन का जिम्मा विद्यालय प्रधान और संबंधित प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को है। जब बच्चों का बायोडाटा का सत्यापन हो जाता है तो फिर राज्य स्तर से बच्चों के खाते में राशि डीबीटी के माध्यम से भेज दी जाती है परंतु विडंबना देखिए कि सत्र को लगभग चार माह बीतने को है परंतु जिले के दो हजार के आसपास ऐसे बच्चे हैं जिन्हें जिनका सत्यापन नहीं किया गया है। जाहिर सी बात है कि ऐसे बच्चे को किताब अब तक नहीं मिल पाई है और ऐसे बच्चे बिना पुस्तक पढ़ाई करने को विवश हैं।
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पढ़ाई हो रही प्रभावित
सरकारी विद्यालयों में अधिकतर गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के बच्चे ही पढ़ाई करते हैं। ऐसे अभिभावक अपने बच्चे को किताब तभी खरीद कर देते हैं जब इनकी राशि उनके खाते में आ जाती है। परिणाम होता है कि समय से राशि नहीं आने के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है।

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