अवैध नर्सिंग होम के खिलाफ नहीं हो रही कार्रवाई, लोगों की जा रही जान

संवाद सहयोगी, किशनगंज : प्यारी बेगम व अपसरी बेगम.. यह वह नाम हैं, जो नर्सिंग होम में अप्रशिक्षित लोगों के इलाज का शिकार होने से जान गवां बैठीं है। यह सिर्फ उदाहरण भर हैं। शहर में जगह-जगह बैठे झोलाछाप, नीम हकीम इलाज के नाम पर हर रोज मरीजों की जान से खेल रहे हैं। इसके बाद भी किशनगंज स्वास्थ्य महकमा मौन है। यही वजह है कि कम दामों में इलाज के लुभावने प्रचार में ग्रामीण मरीज फंस जाते हैं। जिले में तकरीबन 100 से अधिक अवैध नर्सिंग होम संचालित हैं। ज्यादातर नर्सिंग होम में झोलाछाप काम करते हैं। चंद पैसों के लालच में नर्सिंग होम संचालक और झोलाछाप मरीजों का आपरेशन करने लगते हैं। इस साल में अबतक जिले में अवैध नर्सिंग होम में गलत इलाज से तकरीबन एक दर्जन से अधिक महिला की मौत हो चुकी है। नर्सिंग होम में मरीजों की मौत के बाद हंगामा और प्रदर्शन, तोड़फोड़ आम बात हो चूकी है। जिले में संचालित अवैध नर्सिंग होम में मौतों के खेल के बाद भी स्वास्थ्य महकमें ने बड़ी कार्रवाई की जरूरत नहीं समझी।


जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों में संचालित अवैध नर्सिंग होम संचालक अपने मार्केटिग के लिए गांव गांव में दलाल नियुक्त किए हैं। संचालक के दलाल गांव में कम रुपए में आपरेशन से प्रसव कराने की गारंटी लेते हैं और गांव में गाड़ी तक मुहैया कराकर मरीज को अवैध नर्सिंग होम तक पहुंचा देते हैं। ग्रामीण मरीज अधिक जानकारी नहीं होने के अभाव में इन दलालों के बातो में फंसकर उनके द्वारा चूने गये नर्सिंग होम में चले आते है और अप्रशिक्षित लोगों के आपरेशन करने से अक्सर जच्चा और बच्चा की मौत हो जाती है। कई झोलाछाप शहर के घने महल्लों के बीच में ही मौत का इंडस्ट्री चलाते हैं।
शहर से लेकर गांव तक किसी भी नर्सिंग होम में लापरवाही से मरीज की मौत के बाद शिकायत होने पर स्वास्थ्य अधिकारी जांच करते हैं। लेकिन कभी भी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करते हैं। वहीं जांच के दौरान वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी, मरीज के परिजनों और अन्य गवाहों के बयान, टीम के सदस्यों का विवरण, किन दवाओं का प्रयोग किया गया था, दस्तावेजों की जांच तक नहीं करते हैं और कुछ दिन में ही मामला रफा-दफा हो जाता। कानून के तहत होनी चाहिए कार्रवाई::

अगर कोई अप्रशिक्षित व्यक्ति चिकित्सा के नाम पर मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ करता है। तो उसके खिलाफ इंडियन मेडिकल काउंसलिग एक्ट 1956 की धारा 15(3), आईपीसी की धारा 420 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने का प्रावधान है। इसमें 10 से 15 साल तक की सजा और जुर्माना शामिल है।

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