स्थानीय स्तर पर पालीथिन के प्रतिबंध से लघु व कुटीर उद्योग की बढ़ी संभावना

संवाद सहयोगी, किशनगंज : सिगल यूज पालीथिन के प्रतिबंध के साथ ही इसके वैकल्पिक व्यवस्था की तलाश व्यापारिक प्रतिष्ठान कर रहे हैं। इसके विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होने वाले उत्पाद से स्थानीय स्तर पर रोजगार को बढ़ावा मिला है। कपड़े के झोले के साथ ही कुटीर उद्योग की तर्ज पर कागज से निर्मित उत्पादों की मांग में इजाफा हुआ है। इसके साथ ही फेबरीक निर्मित कैरी बैग की भी मांग बढ़ी है। कितु ऐसे व्यापार करने वालों की चिता इसकी कीमत को लेकर भी है। जो पूर्व में इस्तेमाल होने वाले पालीथिन से कहीं अधिक है। ऐसे व्यापार करने वाले कपड़े निर्मित झोलों के निर्माण में सब्सिडी तक की मांग कर रहे है। ताकि प्रतिबंध का असर लोगों के पाकेट पर भी ना पड़े।


सिगल यूज प्लास्टिक व सौ एमएम से कम निर्मित कई सामग्रियों के प्रतिबंध के बाद से लोगों की चिता इसी दर पर विकल्प को लेकर है। बाजार में इस्तेमाल होने वाले झोलों के साथ ही कपड़े से निर्मित झोलों की मांग में वृद्धि भी हुई है। कागज के ठोंगे का निर्माण करने वाली महिलाओं को भी इससे आस बंधी हैं। वर्तमान में जिले में कपड़े से निर्मित झोले बनाने वाला कोई व्यवसायी नहीं है। इसकी आपूर्ति बंगाल के सिलीगुड़ी से की जा रही है। जिसकी मात्रा मांग अनुसार सीमित है।
स्थानीय स्तर पर झोले का निर्माण करने वाले रंजन कुमार ने बताया कि अभी सौ एमएम से अधिक के प्लास्टिक निर्मित झोले का निर्माण होता है। मांग में कुछ इजाफा हुआ है। इसके साथ ही कपड़े के झोले की सिलाई की मांग व्यापारियों द्वारा की जा रही है। जल्द इसको शुरू करने वाले हैं। इसके साथ ही उनकी पत्नी पेपर से ठोंगे का निर्माण कर रही हैं। इसकी मांग भी बढ़ गई है। इस काम से उनके साथ दस लड़कियां जुड़ी हुई हैं। उनका कहना है कि कपड़े से निर्मित कैरी बैग की कीमत में दुकानदारों को दो से ढाई रुपये पड़ रहे हैं। जो पालीथिन की कीमत से काफी ज्यादा है। अगर सरकार के माध्यम से सब्सिडी व आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाए तो वृहत तौर पर इसका निर्माण व दुकानदारों को भी लेने में सहूलियत होगी। पूर्व में राज्य सरकार के विफल प्रतिबंध के बाद कई व्यापारियों को हुआ था नुकसान:
बिहार सरकार ने 24 अक्टूबर 2018 को 50 एमएम तक निर्मित पालीथिन कैरी बैग के निर्माण, व्यापार, आयात, रिसाइकलिग, परिवहन पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद कई लोगों ने कपड़े से बने झोले व कागजों से बने ठोंगे का निर्माण शुरू किया था। लेकिन प्रतिबंध को लागू कराने की जिम्मेवारी के अभाव में यह बंद व्यवसाय बंद हो गया। वैसे छोटे उद्योग लगाने वाले व महिलाएं अब सहमे हुए हैं। इसके बाद इनके निर्मित सामान बन कर रखे रह गए थे। शहर के खगड़ा में कपडे से झोले बनाने वाले स्थानीय पहल पालीथिन के पुन: इस्तेमाल के शुरु होने के साथ ही बंद करना पड़ा था।

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