बर्षा के बिना सूख रहा बिचड़ा नहीं हो रही है धान की रोपाई

संसू, नवहट्टा ( सहरसा ): मौसम की बेरुखी का असर धान की खेती पर पड़ने लगा है। वर्षा नहीं होने से नर्सरी में लगे बिचड़ा एवं धान की रोपनी को प्रभावित होने लगी है। समय से उगाए गए बिचड़े भी वर्षा के अभाव में पीले पड़ने लगे हैं। बिचड़ों की सही से वृद्धि भी नहीं हो पा रही है। किसानों को दोबारा बिचड़ा की तैयारी करना पड़ रहा है। जून के अंत में हुई वर्षा से किसानों में समय से धान रोपने की उम्मीद जगी थी। किसानों ने धान की रोपनी शुरू भी कर दी थी। निचले हिस्से वाले क्षेत्र के जमीन में पहली बारिश में ही किसानों को धान रोपने का अवसर मिला था। लेकिन पिछले एक सप्ताह से वर्षा नहीं हुई है। जिन खेतों में धान रोपे गए उन खेतों में पानी के कारण दरारें आ गई है। जहां सरकारी व निजी बोरिग, नहर, नदियां हैं, वहां के किसान सिचाई कर धान रोप रहे हैं। उन किसानों को भी काफी ज्यादा लागत आ रही है। छोटे व मध्यम किसान इस तरह से रोपनी नहीं कर सके हैं ।


----
जिले में लक्ष्य के विरुद्ध अबतक महज 20 प्रतिशत ही आच्छादन
----
जिले को इस वर्ष धान की खेती के लिए 71 हजार 320 हेक्टेयर का लक्ष्य मिला है। 15 जून के बाद धान की रोपाई सामान्य तौर पर शुरू हो जाती है। मौसम वैज्ञानिक संतोष कुमार के अनुसार जून में पिछले साल 307 मिमी बर्षा हुई थी। लेकिन, इस साल महज 104 मिमी बारिश हुई है। जिला कृषि कार्यालय के कृषि परामर्शी डा मनोज कुमार सिंह के अनुसार जिले में अब तक निर्धारित लक्ष्य का महज 20 से 22 प्रतिशत ही धान का आच्छादन हो पाया है।
---- वैकल्पिक खेती पर भी किसान कर रहे विचार
--- आद्र्रा नक्षत्र बुधवार को समाप्त हो गया। सात जुलाई से पुनर्वसु नक्षत्र प्रवेश कर रहा है। अच्छी बारिश नहीं होने के कारण धान अच्छादान की गति मंद पड़ गई है। अगले 10 दिनों तक अच्छी बारिश नहीं हुई तो धान की पैदावार प्रभावित होगी। ऐसे में जिले में धान रोपाई का रकबा भी घटेगा और उत्पादन भी कम होगी। बकुनियां के किसान देवेन्द्र यादव का कहना है कि अच्छी बारिश नहीं होने की स्थिति में वैसे फसलों की पैदावार पर भी विचार कर रहे हैं, जो धान के बदले लगाया जा सके। ------------------------ क्या कहते हैं कृषि अधिकारी धान की बेहतर उपज के लिए जल की सबसे अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। सौ किलोग्राम धान की उपज प्राप्त करने के लिए तीन हजार लीटर पानी की जरूरत होती है। किसानों को कम अवधि के धान के प्रभेद के बीज लगाने से कमोवेश उपज मिल सकता है। बीके मिश्रा , कृषि समन्वयक

अन्य समाचार