दो जोड़ी ट्रेन हुई रद, बढ़ी यात्रियों की परेशानी

जागरण संवाददाता, सुपौल। सहरसा-लहेरियासराय-ललितग्राम रेलखंड पर लगभग रोज कोई न कोई ट्रेनें रद हो रही है। ट्रेनों के रद होने के चलते लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले माह अग्निपथ योजना के विरोध में विभिन्न जगहों पर ट्रेनों के इंजन व बोगियों को क्षति पहुंचाए जाने कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है।

हालांकि, इस बात की कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन मौजूदा समय में ट्रेनों के परिचालन की जो स्थिति है उसे देख इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। इस बात को बल इससे भी मिलता है कि अग्निपथ योजना के विरोध के पूर्व इस रेलखंड पर सभी ट्रेनों का परिचालन लगभग नियत समय पर होता था और अग्निपथ योजना के विरोध के दौरान कई दिन कई ट्रेनों को रद करनी पड़ी, लेकिन अब तो विरोध भी शांत भी हो गया है बावजूद इसके अक्सर ट्रेनें रद हो रही है।

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चार ट्रेनें रहीं रद
सहरसा-लहेरियासराय-ललितग्राम रेलखंड पर गुरुवार को चार ट्रेनें रद रही। इन ट्रेनों में 05545 अप लहेरियासराय से सहरसा जाने वाली, 05548 डाउन सहरसा से लहेरियासराय जाने वाली, 05543 अप लहेरियासराय से सहरसा जाने वाली तथा 05546 डाउन सहरसा से लहेरियासराय जाने वाली ट्रेनें है। उक्त ट्रेनें बुधवार को भी रद रही। वहीं मंगलवार को 05543 अप लहेरियासराय से सहरसा जाने वाली तथा 05546 डाउन सहरसा से लहेरियासराय जाने वाली ट्रेनें रद रही। इस तरह अक्सर ट्रेनों के रद रहने की खबरें आती रहती है। ट्रेनों के रद रहने के कारण लोगों को आवगमन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। चिलचिलाती धूप में जब यात्री अपने मंजिल तक जाने के लिए स्टेशन पहुंचते है तो उसे पता चलता है कि ट्रेन रद है, तब उसे मायूस हो लौटना पड़ता है। ट्रेनों के रद रहने से सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को दिक्कतें होती है।
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बसों से जाने को मजबूर
ट्रेनों के रद रहने के चलते यात्री बस से जाने को मजबूर हैं। ऐसे में उन्हें जेब ढीली करनी पड़ रही है। ट्रेनों का किराया कम होने व बसों का किराया अधिक होने के कारण यात्रियों के जेब पर भी भार बढ़ गया है। वहीं बसों से लंबा सफर भी तय करना पड़ रहा है। साथ ही साथ समय भी काफी बर्बाद करना पड़ रहा है। यात्रियों का कहना है कि अगर ट्रेन रद होती है तो इसकी सूचना पूर्व में दे देनी चाहिए, ताकि लोगों को परेशानी न झेलनी पड़े। बहरहाल ट्रेनों के परिचालन की स्थिति में सुधार कब तक हो पाएगा यह कह पाना मुश्किल है।

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