ब्रह्मपद की प्राप्ति के लिए चातुर्मास में करें साधना : आचार्य

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल) : पुराणों के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसी दिन से चातुर्मास आरंभ हो जाता है। इस बार चातुर्मास का शुभारंभ 10 जुलाई से हो रहा है, जो चार मास तक के लिए रहेगा। इसी दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं। इस बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि युधिष्ठिर ने भगवान से पूछा कि महाराज यह देव शयन क्या है, जब देवता भी सो जाते हैं तो संसार कैसे चलता है, तथा देव क्यों सोते हैं, जिसका उत्तर देते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सूर्य के मिथुन राशि में आने पर भगवान मधुसूदन की मूर्ति को शयन करा दें और तुला राशि में सूर्य के जाने पर भगवान जनार्दन को शयन से उठाएं। अधिक मास आने पर भी यही विधि अपनाई जाती है। इन चार मास में जो योग, साधना एवं उपासना करता है वह ब्रह्मपद को प्राप्त करता है। इस दिन उपवास करके भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करके पितांबर आदि से विभूषित कर गद्दे व तकिए वाले पलंग पर उन्हें शयन कराना चाहिए। इन चार महीने में भगवान विष्णु निद्रामग्न रहते हैं, इसलिए इस अवधि में सभी शुभ कार्य वर्जित है,लेकिन आध्यात्मिक एवं पूजा-अर्चना आदि धार्मिक कार्य मन से करना चाहिए। पुन: कार्तिक शुक्ल एकादशी या देवोत्थान एकादशी को भगवान का पूजन कर उत्थान कराना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि भगवान विष्णु का शयन अनुराधा नक्षत्र के आरंभिक तृतीयांश में एवं परिवर्तन श्रवण नक्षत्र के मध्य तृतीयांश में और उत्थान रेवती नक्षत्र के अंतिम तृतीयांश में होता है। इन चातुर्मास में भ्रमण नहीं करते हैं। वह एक ही स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं। इस बार चातुर्मास 10 जुलाई से शुभारंभ हो रहा है, जो चार मास तक के लिए रहेगा। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के करवट बदलने की क्रिया संपन्न करनी चाहिए। आचार्य ने बताया कि पुन: भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को शयन का कारण बताते हुए कहा कि किसी समय तपस्या के प्रभाव से हरि को संतुष्ट कर योग निद्रा में प्रार्थना की कि भगवान आप मुझे भी अपने अंगों में स्थान दें। तब मैंने देखा कि मेरा संपूर्ण शरीर लक्ष्मी आदि के द्वारा अधिष्ठिट है। इसलिए मैंने संतुष्ट होकर योगनिद्रा को आदरपूर्वक अपने नेत्रों में स्थान दिया और कहा कि तुम वर्ष में चार मास मेरे आश्रित रहोगी। यह सुनकर प्रसन्न मुद्रा में योग निद्रा ने मेरे नेत्रों में वास किया। जब मैं क्षीर सागर में इस महानिद्रा शेष शैय्या पर शयन करता हूं तो उस समय ब्रह्मा के सानिध्य में लक्ष्मी अपने कर कमलों से मेरे दोनों चरणों का मर्दन करती है।


अन्य समाचार