बिना रजिस्ट्रेशन के संचालित हैं सैकड़ों क्लीनिक, लूटे जा रहे मरीज

जागरण संवाददाता, सुपौल : डाक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है, लेकिन इस पेशे की आड़ में अवैध तरीके से क्लीनिक, नर्सिंग होम व अस्पताल मरीजों के आर्थिक दोहन का पेशा बन चुका है। इस तरह के क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पतालों में अक्सर मरीजों की जान जाने की खबरें आती रहती है। शुक्रवार को हरदी की एक प्रसूता की निजी क्लीनिक के चक्कर में गई जान इसी का परिणाम है। मालूम हो कि कोई भी निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल संचालित करने के लिए क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत संस्थान का रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक होता है, लेकिन विडंबना देखें कि इस जिले में मात्र नौ निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल तथा दस पैथोलाजी व डायग्नोस्टिक सेंटर ही रजिस्टर्ड हैं। जबकि शहर के मुख्य चौराहे से लेकर गांव की गलियों तक सैकड़ों की संख्या में निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल तथा पैथोलाजी व डायग्नोस्टिक सेंटर डंके की चोट पर संचालित हैं।

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विभागीय कार्रवाई शून्य
क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट के तहत अवैध रूप से संचालित निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल तथा पैथोलाजी व डायग्नोस्टिक सेंटर पर कार्रवाई का भी प्रावधान है, लेकिन इस दिशा में विभागीय स्तर पर कार्रवाई शून्य है। पिछले माह सिविल सर्जन द्वारा अवैध रूप से संचालित जांचघर, डायग्नोस्टिक सेंटर, पैथोलाजी, लैबोरेट्री, अल्ट्रासाउण्ड, क्लीनिक, नर्सिंग होम के विरुद्ध कार्रवाई करने का निर्देश जिले के सभी अस्पतालों के उपाधीक्षक व प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को दिया गया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। कारण जो भी हो, लेकिन कुकुरमुत्ते की तरह संचालित अधिकतर संस्थानों के इलाज से ग्रामीण व शहरी इलाकों के भोले-भाले मरीजों की जान खतरे में रहती है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि बिना रजिस्ट्रेशन के कई संस्थान दलालों के माध्यम से चल रहे हैं, जहां कमीशन पर मरीजों को पहुंचाया जाता है।
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प्राधिकार के तहत होता है रजिस्ट्रेशन
क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट के अनुसार जिला रजिस्ट्रीकरण प्राधिकार के तहत पंजीकरण कराना पड़ता है। इसके तहत एक साल का औपबंधिक निबंधन किया जाता है। वहीं विधि मान्य अवधि से एक माह पूर्व पंजीयन के नवीकरण के लिए आवेदन देना पड़ता है। अगर उक्त अवधि में नवीकरण के लिए आवेदन नहीं किया जाता है तो संस्थान को प्रति माह की दर से जुर्माना भरना पड़ता है। इसके अलावा रजिस्ट्रेशन के लिए बायो मेडिकल वेस्ट एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र तथा अग्निशमन सुरक्षा प्रमाण पत्र सहित अन्य जरूरी दस्तावेज देने पड़ते हैं। ऐसे नियम के बावजूद कई ऐसे भी निजी क्लीनिक हैं जहां बिना मूर्छक व सर्जन के आपरेशन भी मरीजों का किया जाता है। जब आपरेशन के समय मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है वहां के संचालक द्वारा बेहतर इलाज के लिए रेफर कर दिया जाता है, जिससे मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है।

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