बकरीद पर्व सुरक्षा के थे कडे़ इंतजाम

संवाद सूत्र, गलगलिया (किशनगंज) : ईद-उल-अजहा हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद के तौर पर मनाया जाता है। मुस्लिम समुदाय का यह खास पर्व बकरीद पर्व रविवार को मनाया गया। इस अवसर पर गलगलिया सीमावर्ती थाना क्षेत्र के ईदगाहों व मस्जिदों में ईद उल अजहा की नमाज पढ़ी गई। नमाज अदा करने के बाद सभी ने एक दूसरे को बकरीद की मुबारक बाद दी। बकरीद पर सुरक्षा के मद्देनजर गलगलिया थाना क्षेत्र के चौक चौराहों पर पुलिस की गश्त तेज थी।

मिनारा जामा मस्जिद गलगलिया के मौलाना मु. मैसुद्दीन साहब ने कहा कि ईद-उल-अजहा का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धांत हज की भी पूर्ति करता है। आदिकाल से ही जब ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की तो इंसान को सही जीवन जीने के लिए अपने पसंदीदा बंदों या नबियों के द्वारा ऐसा संविधान और जीवन दर्शन भी भेजा, जो मानव समाज को कुर्बानी अर्थात बलिदान का महत्व समझा सके और उसमें यह भावना भी पैदा कर सके। इस संविधान के आदम से लेकर तमाम नबी अपने साथ लाये। इस संविधान या जीवन दर्शन में अन्य बातों के अलावा इंसान को अपने अहंकार व अपनी प्रिय वस्तुओं को अल्लाह की राह में और उसकी इच्छा के लिए कुर्बानी करने की भी शिक्षा दी गई। कुरान में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी। हजहत इब्राहिम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था। उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय किया। लेकिन जैसे ही हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की बलि लेने के लिए उसकी गर्दन पर चाकू रखा तो अल्लाह चाकू की धार से हजरत इब्राहिम के पुत्र को बचाकर जन्नत से एक दुम्बा (भेड़) भेजकर कुर्बानी दिलवा दी। इसी कारण इस पर्व को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। इसी अवसर पर पवित्र शहर मक्का में ह•ारत इब्राहीम, ह•ारत इस्माईल और ह•ारत इब्राहीम की पत्नी व ह•ारत इस्माईल की मां ह•ारत हाजरा की सुन्नतों को अदा करते हैं। कुर्बानी का महत्व::

कुर्बानी का महत्व यह है कि इंसान ईश्वर या अल्लाह से असीम लगाव व प्रेम का इजहार करे और उसके प्रेम को दुनिया की वस्तु या इंसान से ऊपर रखे। इसके लिए वह अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु को कुर्बान करने की भावना रखे। कुर्बानी के समय मन में यह भावना होनी चाहिए कि हम पूरी विनम्रता और आज्ञाकारिता से इस बात को स्वीकार करते हैं कि अल्लाह के लिए ही सब कुछ है।

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