ना तो गांव रहा न अब तक बन पाया शहर

जागरण संवाददाता, सुपौल: पिछले वर्ष जिले के सात पंचायतों को नगर निकाय में शामिल किया गया। ग्राम पंचायतों को नगर निकाय में शामिल करने का मुख्य मकसद जिले में शहरीकरण के दायरे को बढ़ाना तथा विकास कार्यों को गति प्रदान करना था। परंतु सरकार की यह परिकल्पना फिलहाल इन पंचायतों के लिए अभिशाप बन गई है। पिछले एक वर्ष से ग्राम पंचायत से नाता तोड़ नगर निकाय में शामिल किये गए इन पंचायतों को न नगर निकाय वाली सुविधा मिल पा रही है और न ही ग्राम पंचायत वाली। वजह है कि इन पंचायतों को तो नगर निकाय में शामिल कर लिया गया परंतु निकायों का गठन नहीं होने के कारण फिलहाल उन्हें यह सुविधा नहीं मिल पा रही है। जिससे यहां विकास कार्य ठप पड़े हैं। इससे पूर्व जब इन पंचायतों को ग्राम पंचायत का दर्जा प्राप्त था तो कुछ ना कुछ विकास कार्य होता रहता था। विकास कार्यों के साथ-साथ लाभ आधारित योजनाएं चलती रहती थी। इससे यहां के लोग लाभान्वित होते थे। लेकिन अब नगर निकाय में शामिल किए गए इन पंचायतों की दुर्दशा ऐसी है कि अब न तो यह गांव रह पाया है और ना ही अब तक शहर ही बन पाया है। खासकर इन पंचायतों को नगर निगम में शामिल किए जाने से गरीबों की स्थिति सबसे ज्यादा बेघर हुई है। गरीबों को मिलने वाले आवास जैसी महत्वपूर्ण योजना पिछले एक वर्ष से ठप है। जिससे कई गरीबों को अपना आशियाना वाले सपने अधूरे रह जा रहे हैं। जिससे ऐसे लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल जिले में शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए तीन नगर निकाय नव सृजित किए गए थे। जिसमें त्रिवेणीगंज प्रखंड के बभनगामा, थलहा गढिया दक्षिण, लतौना उत्तर तथा डपरखा पंचायत को मिलाकर नगर परिषद त्रिवेणीगंज, राघोपुर प्रखंड के पिपराही और सिमराही पंचायत को मिलाकर नगर पंचायत सिमराही तथा पिपरा प्रखंड के पिपरा पंचायत को नगर पंचायत पिपरा बनाया गया । इन सभी को तो नगर निकाय का दर्जा मिल गया परंतु निकाय गठन नहीं होने से पिछले करीब एक वर्ष से सभी तरह के विकासात्मक कार्यों के साथ-साथ लाभकारी योजनाएं बंद पड़ी है।


---------------------------------------------
आवास योजना का नहीं मिल पा रहा लाभ
नगर निकायों में शामिल किए गए इन सातों पंचायत के लोग अन्य योजनाओं के साथ-साथ आवास जैसी महत्वपूर्ण योजना से वंचित रह जा रहे हैं। कारण है कि इन पंचायतों को नगर निकाय में शामिल कर लिया गया परंतु अभी तक नगर निकाय का गठन संभव नहीं हो पाया है। जिसके कारण लाभुकों का सर्वेक्षण कार्य संभव नहीं हो पा रहा है । जब तक सर्वेक्षण नहीं होगा तब तक लाभुकों का डाटा तैयार होना संभव नहीं है । फिलहाल इन निकायों में अभी चुनाव होने की भी संभावना नहीं दिख रही है। परिणाम है कि इन पंचायतों के गरीब लोगों को अब ना पंचायत की योजना से आवास मिल पा रही है और ना ही नगर निकाय से ।जिससे सैकड़ों गरीब आवास योजना से वंचित हो जा रहे हैं।
---------------------------------------------
बाजार वाले हिस्से में लग रहा झाड़ू
जब इन पंचायतों को नगर निकाय का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ था तो इन सभी पंचायतों में 2011 की जनगणना के मुताबिक 4365 लोग आवास अहर्ता को पूरा कर रहे थे। इनमें से करीब 900 लाभुकों को आवास योजना का लाभ दिया गया। इधर शेष बचे लाभुकों को आवास योजना से आच्छादित करने का कार्य चल ही रहा था कि इन पंचायतों को नगर निकाय में शामिल कर दिया गया। जिससे शेष बचे लाभुक इस योजना से वंचित रह जा रहे हैं। आनेवाले दिनों में जब नगर निकाय का गठन हो जाएगा तो फिर सर्वेक्षण का कार्य निकाय के माध्यम से होगा। ऐसे में ये लाभुक शामिल होंगे या नहीं इसको लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। फिलहाल इन पंचायतों को नगर निकाय में शामिल किये जाने का एक फायदा है कि इन पंचायतों में सुबह शाम झाड़ू तो लग रहे हैं परंतु सिर्फ बाजार वाले हिस्से में।

अन्य समाचार