जब्त बेशकीमती लकड़ी के प्रति दिखी पुलिस की रूचि, जांच से केस तक वन विभाग को रखा दरकिनार

शैलेश, किशनगंज : पुलिस विभाग के सामान्य कामकाज एवं सभी विभागों से सामंजस्य बनाकर काम करने की सराहना होना लाजमी है। वहीं जब पुलिस किसी मामले में खुद के विशेषाधिकार का उपयोग कर संबंधित विभाग को दरकिनार कर दे तो सवाल उठना लाजमी है। ऐसा ही सवाल 25 जून की रात सदर थाना क्षेत्र के रामपुर चेकपोस्ट पर ट्रक में मक्का के नीचे बेशकीमती लकड़ी छिपाकर तस्करी करने के मामले में पुलिस की कार्रवाई को लेकर उठने लगा है। ट्रक से वन्य पदार्थ तस्करी होने के बाद भी पुलिस वन विभाग को पूरे मामले में अब तक दरकिनार कर रखा है।


लकड़ी पकड़ने जाने के बाद जब चंदन की लकड़ी होने की सूचना फैलने लगी तो पुलिस ने वन विभाग को सूचना देकर लकड़ी के सत्यापन के लिए बुलाया। सत्यापन में वन विभाग की टीम ने सागवान की लकड़ी होने की बात बताई। इसके बाद पुलिस वन विभाग को बगल कर खुद पूरे मामले में कमान संभाल ली। यहां तक कि वन विभाग से न जब्त लकड़ी की मापी कराई गई, न ही जब्ती सूची पर वन विभाग के किसी अधिकारी या कर्मी का हस्ताक्षर कराया गया। वहीं पुलिस खुद मामला दर्ज कर अन्य मामलों की तरह जब्त वन्य पदार्थ को वन विभाग को नहीं सौंपकर खुद जांच पड़ताल कर रही है। हालांकि लकड़ी के साथ पकड़े गए आरोपित न्यायालय से छूट भी गए हैं। जब्त बेशकीमती लकड़ी के प्रति पुलिस की रूचि और विशेषाधिकार का उपयोग करने की चर्चा हर ओर हो रही है। आखिर जब्त लकड़ी को लेकर पुलिस के पास ऐसी क्या परिस्थिति आ गई कि वन विभाग को किसी तरह से मामले में अब तक इंट्री तक नहीं करने दिया गया। वन विभाग के अधिकारी और कर्मी थाने जाकर वहां से लौट गए। वन विभाग के अधिकारी पुलिस अधिकारी से बात भी किए, लेकिन पुलिस इस मामले में खुद केस दर्ज कर जांच करने की बात कहकर वन विभाग को साइड कर दिया।
मापी तक का कार्य खुद पुलिस ने ही किया::

मामले में पुलिस ने इतनी रूचि ली कि जिले में वन विभाग के अधिकारी और कर्मी होने के बावजूद वन्य पदार्थ की जांच और मापी की जिम्मेदारी खुद पुलिस अधिकारियों ने संभाल ली। जब्त करीब 40-50 पीस लकड़ी के सिली आखिर कितना घन मीटर और कुल कितना है इसकी मापी भी पुलिस ने ही की और थाने में मौजूद वन विभाग के कर्मी आखिरकार धीरे-धीरे वापस लौट गए। पुलिस हर मामले में भला ऐसी जिम्मेदारी लेना उचित नहीं समझते। हालांकि कभी-कभी किसी मामले को पुलिस अधिकारी विशेषाधिकार समझ पूरी जिम्मेदारी उठा लेते हैं।

वन्य पदार्थ वन विभाग को सौंपने का है नियम::

पुलिस या अन्य किसी विभाग द्वारा किसी भी संबंधित विभाग की वस्तु पकड़े जाने के बाद जब्ती सूची बनाकर उस विभाग के सौंपने का नियम है। ताकि उस विभाग के द्वारा पूरे मामले की जांच सही तरीके से दक्ष अधिकारी के द्वारा की जा सके। अधिकांश मामले में पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में ऐसा देखने को भी मिलता है कि पुलिस कार्रवाई के बाद जब्त सामान को संबंधित विभाग को सौंप देती है, अन्यथा कई केस की जिम्मेदारी भी संबंधित विभाग को दे दी जाती है। हालांकि जानकारी के अनुसार पुलिस को सभी मामले में कार्रवाई का अधिकार है। लेकिन संबंधित विभाग से मामले की सही जांच और कार्रवाई होने के कारण विभाग स्थानीय स्तर पर बनाया भी गया है अन्यथा अन्य सभी विभाग का काम पुलिस ही कर लेती तो स्थानीय स्तर पर ऐसे विभाग क्या करें। कोट के लिए:-
मामले में पुलिस अधिकारी से बात की गई, लेकिन अधिकारी अपने स्तर से केस दर्ज कर जांच करने की बात बताए। वन विभाग के अधिकारी व कर्मी से अब तक कोई जांच व कार्रवाई के लिए संपर्क किया गया है।
नरेश प्रसाद, डीएफओ, अररिया
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कोट के लिए:-
पुलिस को सभी तरह का केस दर्ज कर कार्रवाई का अधिकार है। जब्त लकड़ी मामले में वन विभाग को आगे की कार्रवाई करने के लिए देने की कवायद की जा रही थी, लेकिन डीएसपी साहब के निर्देश पर थाने में मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू की गई।
अमर प्रसाद सिंह, सदर थानाध्यक्ष

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