सिमुलतला में है भगवान भोलेशंकर का अतिप्रिय कैलाशपति फूल का पेड़

फोटो- 12 जमुई- 9

- सिमुलतला के माधव भीला में है यह पेड़
- पंखुड़ियों का स्वरूप नाग के फन की तरह, जिसके तले बना होता शिवलिग
- श्रावण में इस पुष्प से भोलेनाथ की पूजा का बहुत है महत्व संदीप कुमार सिंह, सिमुलतला (जमुई): देवों के देव महादेव का पूजन का सबसे पवित्र महीना श्रावण 14 जुलाई से प्रारंभ है। भगवान भोलेशंकर को खुश करने के लिए उसके भक्त पैदल कांवर यात्रा, रुद्राभिषेक, जप - तप आदि कई प्रकार के पूजन आदि इस माह में करते है। भोलेनाथ को बेलपत्र, भस्म, धथूरा फल और फूल आदि काफी पसंद है। लेकिन एक पुष्प ऐसा भी है जिसे भगवान भोलेशंकर का सबसे प्रिय फूल कहा जाता है। इस फूल को कैलाशपति, शिवलिग, नाग चम्पा, नागलिग और मल्लिकार्जुन फूल के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुआयी इस फूल को बहुत ही पवित्र, धार्मिक तथा भगवान शंकर से संबंधित वृक्ष मानते हैं। इस फूल को पेड़ सिमुलतला स्थित माधव भीला में मौजूद है। संस्थान के मालिक डा. यूपी गुप्ता इसकी काफी देखभाल करते हैं। सिमुलतला निवासी विज्ञानाचार्य कामेश्वर पांडे ने बताया कि भगवान भोले शंकर इस फूल से काफी प्रसन्न होते है। श्रावण माह में इस फूल को पाना शिव भक्तों का सपना सामान होता है। कहा जाता है कि श्रावण मास में जो भक्त भगवान शंकर को यह फूल चढ़ाते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। बताया जाता है कि शिव भक्त इस पुष्प की तलाश में भटकते है। कहा जाता है की यह पुष्प भारत में बहुत कम जगहों में पाया जाता है। यह फूल श्रीलंका में ज्यादा पाया जाता हैं। ऐसा कहा जाता है कि रामायण काल के समय जब हनुमान जी माता सीता की तलाश करते हुए अशोक वाटिका को बर्बाद कर रहे थे, तभी इस फूल पर हनुमान जी की नजर गई। शिवलिग देख कर हनुमान जी ने संभालकर फूल को भगवान श्रीराम को दिखाने के लिए साथ ले आए थे।

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शिवलिग सा है फूल का स्वरूप
पंखुड़ियों के बीच में मौजूद आकृति शिवलिग की तरह होती है। घेरे हुए पंखुडियां इस तरह मुड़ी होती हैं मानो नाग के फन हो। देखने पर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कई नाग अपने फनों को उठा कर शिवलिग को घेरे हुए है। ईश्वर प्रदत्त इस फूल के रूप को देखते ही धार्मिक भावना से जुड़े लोगों में भक्तिभाव जागृत हो उठता हैं। यह फूल अच्छी खुशबू वाले होते हैं।
---------------- सामान्य वृक्षों की तरह नहीं लगता फल
इस फूल का फल आमतौर पर सामान्य वृक्षों की सामान्य शाखाओं पर लगने वाले फलों की तरह नहीं होती है। यह मुख्य तने से छोटी - छोटी टहनियों जैसा निकली हुई लम्बी, लचीली और नीचे की ओर झूलती हुई विशेष शाखाओं के बाहरी छोर की ओर लगे होते हैं। कुछ फल तो इन लंबी व विशेष शाखाओं पर लगे रहने के बावजूद भूमि को स्पर्श करती हैं। नीचे के फलों को कम उम्र के बच्चे भी आसानी से तोड़ सकते हैं। फलों का आकार कवचयुक्त नारियल के फलों की तरह होता है। फूल के फल बनने और परिपक्व होने में लगभग आठ - नौ माह का समय लगता है।

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