12 हजार की जगह 8366 हेक्टेयर भूमि में ही हो पाई मक्का की खेती

मोतिहारी । वर्षा नहीं होने से धान की रोपनी के साथ खरीफ की अन्य फसलें भी प्रभावित हो रही हैं। इससे खरीफ मक्का भी अछूता नहीं है। जिले में 12 हजार हेक्टेयर की जगह मात्र 8366 हेक्टेयर भूमि में ही मक्का की खेती हो पाई है।पीपराकोठी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र प्रमुख सह वरीय विज्ञानी डा. अरविद कुमार सिंह ने कहा कि तापमान में एक से चार डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से मक्का की 25 से 70 प्रतिशत तक फसल प्रभावित हो सकती है। ऐसा ही असर फल और सब्जियों के साथ-साथ मछलीपालन पर भी देखा जा सकता है। खेती जलवायु से सीधे प्रभावित होती है। बढ़ते तापमान से फसलों की पैदावार घट जाती है और साथ ही खर-पतवार और कीट बढ़ जाते हैं। इससे ना सिर्फ तात्कालिक रूप से फसलों को नुकसान होगा, पैदावार पर दीर्घकालिक असर भी होगा। मौसम अगर इसी तरह रहा तो उत्तर बिहार के सभी जिलों में लक्ष्य के अनुरूप मक्का की खेती नहीं हो सकेगी। मिट्टी का तापमान बीज बोआई के विपरीत है, इसको लेकर मक्का की बुआई के लिए किसान अनुकूल मौसम के इंतजार में है। केविके प्रमुख ने बताया कि मक्का बुआई का समय जून का द्वितीय व जुलाई का प्रथम पखवारा ही उपयुक्त है। जुलाई का प्रथम पखवारा बीतने को है। अगर दो-चार दिनों के अंदर मौसम अनुकूल नहीं होता है तो किसान ऊंची भूमि पर अरहर की खेती कर नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। किसान तिल व मूंग की खेती को भी विकल्प के रूप में ले सकते है। किसान अगस्त व सितंबर माह में मूली या सितंबर के अंतिम सप्ताह में सरसों की खेती भी कर सकते है। वही खरपतवार के लिए उचित मात्रा में दवा का उपयोग कर सकते है। वहीं जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद ने बताया कि जिले के 12 हजार हेक्टेयर भूमि पर मक्के की बोआई का लक्ष्य है। लक्ष्य पूरा करने के लिए जिले के सभी 27 प्रखंडों को लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया है। डीएओ ने बताया कि मंगलवार तक 12 हजार हेक्टेयर भूमि पर मक्का की खेती के विरूद्ध जिले के विभिन्न प्रखंडों में 8366 हेक्टेयर भूमि पर बुआई हो चुकी है, जो लक्ष्य का 69.72 प्रतिशत है।

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इनसेट मक्का की फसल के लिए दोमट व मध्यम से भारी मिट्टी उपयुक्त
पिपराकोठी केविके के मुख्य विज्ञानी डॉ. अरविद कुमार सिंह ने कहा कि मक्का की फसल लगभग सभी प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है। लेकिन इसकी अच्छी बढ़वार और उत्पादकता के लिए दोमट और मध्यम से भारी मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा भूमि में पर्याप्त मात्रा में जीवांश और उचित जल निकास का प्रबंध होना चाहिए।
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