सावन माह में पूजा से जल्द प्रसन्न होते हैं भगवान शिव

संसू, महिषी (सहरसा): सावन मास में शिवलिग पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। जानकारों की मानें तो शिव पूजन से साधन, भोग और मोक्ष फल की प्राप्ति होती है। शिव पुराण में वर्णित तथ्यों के अनुसार सृष्टि की रचना शिव और शक्ति के संयोग से हुआ है। मान्यता है कि माता पार्वती ने शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए सावन मास में ही तपस्या की थी और शिव प्रसन्न हुए थे।

इस प्रचलित कथा के आधार पर ही भक्तों का मानना है कि सावन मास में भगवान शिव जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें अभिष्ट फलों की प्राप्ति हो सकती है।

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क्या है शिवलिग का अर्थ
शिवलिग के संबंध में शिव पुराण सहित अन्य प्राचीन पुस्तकों से प्राप्त जानकारी के अनुसार शिवलिग शिव और शक्ति का एकीकृत स्वरूप है। जिसके पूजन से सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है । जन्म के संकट से छुटकारा के लिए शिवलिग की पूजा की जानी चाहिए।
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शिव पूजन के लिए धर्मशास्त्रों में वर्णित काल
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सावन मास का प्रत्येक दिन शिव पूजन के लिए विशेष फलदायी ना जाता है ।इसके अतिरिक्त यदि आद्र्रा और महाआद्र्रा (सूर्य संक्रांति से युक्त आद्र्रा ) का योग हो तो उक्त अवसर पर शिव पूजा का विशेष महत्व है। माध मास के कृष्णा चतुर्दशी की हुई शिव पूजा संपूर्ण अभिष्ट फल देने वाली होती है। ज्येष्ठमास में चतुर्दशी को यदि महाद्र्राका योग हो अथवा मार्गशीर्ष मास में किसी भी तिथि को यदि आद्र्रा नक्षत्र हो तो शिव का षोडश उपचार से पूजन करने से पुण्यात्मा के दर्शन का फल प्राप्त होता है ।
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क्या कहते हैं जानकार
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इस संबंध में श्रीउग्रतारा भारती मंडन संस्कृत महाविद्यालय महिषी में पदस्थापित वेदाचार्य चन्द्रेश उपाध्याय ने बताया कि सावन मास शिव के लिए सबसे अधिक प्रिय है। इसी मास में पार्वती ने शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी ।इसलिए सावन मास शिव को सर्वाधिक प्रिय है। महाविद्यालय के प्रो. नन्दकिशोर चौधरी ने बताया कि सावन मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। सृष्टि के संचालन का भार भगवान शिव पर चला आता है । लोग इन्हीं की पूजा कर इन्हें प्रसन्न करना चाहते हैं । ज्योतिष शास्त्र के जानकार पं. जवाहर पाठक ने बताया कि सावन मास में शिव पर पान किए गए विष का प्रभाव अधिक रहता है। जिस कारण उन्हें गाय का दूध, दही ,गंगाजल ,मधु एवं धी का लेप लगाया जाता है।

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