कल से शुरू होगा मिथिलांचल की लोक परंपरा का पर्व मधुश्रावणी

संसू, नवहट्टा (सहरसा) : मिथिलांचल में नवविवाहित सुहागिनों का महान पर्व मधुश्रावणी कल से शुरू होगा। सावन मास के कृष्ण पक्ष में 18 जुलाई को नागपंचमी के अवसर पर सुहाग की रक्षा और घरों को सर्पभय से मुक्ति दिलाने के लिए नाग नागिन की पूजा होगी। नवविवाहिताएं 14 दिनों का पूजा कर अपने पति की दीर्घायु होने की कामना करती हैं।

नवविवाहिताओं ने अपनी सहेलियों के साथ फूल तोड़कर डाली सजाकर पूजा की शुरुआत करेंगी। पूजा के दौरान नाग नागिन को दूध लावा चढ़ाकर परिवार के लिए मंगलकामना की जाती है।
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नवविवाहिता के लिए है साधना
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पंडित बमबम झा बताते हैं कि नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा के बाद शाम में धान का लावा घर व दरवाजे के विभिन्न कोने में छिड़काव किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे घर में लोगों को सर्प का किसी तरह का भय नहीं होता है। नव विवाहिताओं के लिए ये एक प्रकार से साधना है। नवविवाहिता इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती है। बिना नमक का खाना खाती है। जमीन पर सोती है। झाड़ू नहीं छूती है। बहुत ही नियम से रहना पड़ता है। नवविवाहिताएं अपनी सखी-सहेलियों के साथ बगीचे में फूल तोड़ने जाती हैं। पूजा का समापन टेमी रूई की बाती दागने से समाप्त होती है। ससुराल से आये रूई की बाती से नवविवाहिता के पांव पर टेमी दागी जाती है। ये रस्म एक प्रकार की अग्निपरीक्षा के समान होती है।
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क्या है मान्यताएं
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पोखर भिडा के पंडित बमबम झा बताते हैं कि स्कंद पुराण के अनुसार नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं। आदिकाल में कुरूप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल हुए थे। अपने पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था। मिथिला में इस पूजा की परंपरा सदियों से चली आ रही है । इसके अलावा भी अन्य कथा जुड़ी हुई हैं।

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