पालीथिन पर प्रतिबंध के बाद पत्तल उद्योग के दिन बहुरने की आस



शशिकांत कुमार, धरहरा (मुंगेर): 15 वर्ष पहले नक्सल प्रभावित धरहरा और खड़गपुर प्रखंड की आदिवासी समाज की महिलाएं सखुआ पत्ते से पत्तल बनाकर आजीविका चलाती थीं। थर्मोकाल के आने के बाद इनके आजीविका के साधन टूट गए। थर्मोकोल प्लेट के सामने पत्तलों की मांग कम होने लगी। आदिवासी समुदाय की महिलाएं किसी तरह अपना गुजर-बसर कर रही थीं। एक जुलाई से थर्मोकाल और प्लास्टिक बंद होने के बाद फिर से पत्तलों की डिमांड बढ़ने लगी है। धरहरा प्रखंड की अजीमगंज पंचायत के मथुरा, गोड़़ैया, खड़गपुर प्रखंड क्षेत्र के मधुवन, बनबर्षा, हथिया, रारोडीह, जटातरी, बघेल, गंगटी, फुलवरिया, मोतीतरी, मोतियातरी, भीमबांध, दूधपनिया सहित दो दर्जन गांव की कई महिलाएं सखुआ पत्ते से पत्तल बनाकर पत्तल बनाने में जुट गई हैं। बुधनी देवी, कारी देवी, किरण देवी, संध्या देवी ने बताया कि थर्मोकाल बंद होने के बाद पत्तल की डिमांड शुरू हो गई है। आर्डर लेकर लोग पहुंच रहे हैं। देना पड़ता है। एक महिला पूरे दिन में 100 से 150 पत्तल बनाती है। सौ पत्तल की कीमत 120 से 150 रुपये मिलती है। लोग आकर इसकी डिमांड कर रहे हैं। महिलाओं ने कहा कि सरकारी स्तर पर किसी तरह का अनुदान मिल जाए तो वे पैकिग और फोल्डिग मशीन भी स्थापित कर लेंगे। ------------------------ मुथरा गांव की पहचान है पत्तल निर्माण धरहरा प्रखंड मुख्यालय से लगभग 11 किलोमीटर दूर आजीमगंज पंचायत स्थित मथुरा गांव की पहचान परंपरागत पत्तल निर्माण केंद्र के रूप में होती रही है। इस गांव के लगभग दो दर्जन से अधिक परिवार इस पेशे से जुड़े हुए हैं। यह गांव चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा है। जीविका का एकमात्र साधन पत्तल बनाकर बाजारों में बेचना है। उन लोगों का बनाया पत्तल शादी से लेकर श्राद्ध और अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों में हर घरों में उपयोग होता है, लेकिन बदलते परिवेश में इसी रोजगार से पेट चलाना इन परिवारों के लिए काफी मुश्किल होता जा रहा है। ---------------------------- इन गांव की महिलाएं लगी है काम में मथुरा, गोरैया, बरमसिया, सखोल, खोपावर, करेली गांव में पत्तल बनाया जाता है। पत्तल बनाने वाली मैनी देवी, संजू देवी, सुनीता देवी, देवी सौरेन, अनीता देवी कहती है कि बाजार में थर्मोकोल से बने पत्तल व कटोरी आ जाने से इनका पत्तल उस अनुरूप नहीं बिक रहा था। एक बंडल में 25 पत्तल रहता है। एक बंडल की कीमत 14 रुपये है। अब मांग बढ़ेगी तो रेट भी बढ़ेगा। यह सोचकर पत्तल बनाने वाले खुश हैं।

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