81.9 फीसद बच्चे हैं एनीमिया की समस्या से पीड़ित

- बाल मृत्यु दर का औसत 35 से 36 के बीच

- जिला का मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से भी अधिक
- राज्य का मृत्यु दर का औसत 29 और राष्ट्रीय मृत्यु दर का औसत 30
- प्रत्येक 1000 बच्चों के जन्म के आधार पर होता है मृत्यु दर का आकलन
- मृत्यु दर के पीछे कुपोषण और बाल विवाह है जिम्मेदार
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- 81.9 फीसद बच्चे हैं रक्त की कमी से पीड़ित
-45.9 फीसद बच्चे हैं अति कुपोषित
-47.2 फीसद बच्चे उम्र के हिसाब से कम लंबाई और वजन की समस्या से हैं पीड़ित
-36.8 फीसद बच्चे जन्म के तुरंत बाद स्तनपान नहीं होने से हो जाते हैं कुपोषित
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फोटो-17 जमुई- 21
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संवाद सहयोगी, जमुई: कुपोषण और बाल विवाह के कारण जिले का शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। यानी जिला का बाल मृत्यु दर 35 से 36 के बीच है। जबकि राज्य का मृत्यु दर 29 और राष्ट्रीय मृत्यु दर का औसत 30 है राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर करें तो जिले में 81.9 फीसद बच्चे एनीमिया यानि रक्त की कमी से पीड़ित हैं। 45.9 फीसद बच्चे अति कुपोषण के शिकार हैं। इसके अलावा 47.2 फीसद बच्चे शारीरिक लंबाई और उम्र के हिसाब से समुचित वजन नहीं होने के कारण कम वजन की समस्या से भी पीड़ित हैं। वही 31 फीसद महिलाएं उम्र और हाइट के अनुसार सही वजन नहीं होने की समस्या से पीड़ित है। इसके अलावा 36.8 फीसद बच्चे जन्म के तुरंत बाद स्तनपान नहीं होने और 63.9 फीसद बच्चे 6 माह तक समुचित स्तनपान नहीं होने के कारण कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।बाल विवाह की बात करें तो पांच वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार जिला का एशिया महाद्वीप में पहला स्थान है। आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में 16 से 18 वर्ष आयु के बीच के युवा और युवतियों का बाल विवाह हो रहा है। इसके अलावा कम उम्र में युवतियों का विवाह होना, कम अंतराल पर अधिक संतान होना और स्वास्थ्य शिक्षा का अभाव होना मूल रूप से तीन कारण जिम्मेवार है। जिले के चकाई, सोनो, झाझा और खैरा प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव की कमी होना भी है बाल मृत्यु दर के लिए कहीं ना कहीं जिम्मेवार पहलू है। जन्म लेने के दौरान ही लापरवाही बरतने के कारण अथवा जन्म लेने के पश्चात सांस लेने में तकलीफ जैसी परेशानी होने पर भी अधिकांश बच्चों की मौत हो जाती है। इसके अलावा जन्म लेने के पश्चात सही देखभाल नहीं होने का कारण संक्रमण के कारण भी बच्चे असमय काल के गाल में समा जाते हैं ।
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बाल मृत्यु दर का औसत 35 से 36 के बीच
राज्य सरकार शिशु मृत्यु दर पर रोक लगाने के लिए शिशु स्वास्थ्य संरक्षण के लिए कई योजनाएं चला रही है। वहीं दूसरी ओर जिला का शिशु मृत्यु दर राज्य और राष्ट्रीय औसत से भी अधिक होना सचमुच में आश्चर्यजनक है। शिशु मृत्यु दर का आकलन प्रत्येक 1000 बच्चों के जन्म के आधार पर किया जाता है। सुदूरवर्ती क्षेत्रों में लोगों के बीच शिक्षा अथवा जानकारी का अभाव होने के कारण भी मृत्यु दर में कमी नहीं आ पाई है। इसके पीछे कम उम्र में विवाह होना और युवतियों का कम उम्र में मां बनना भी बहुत हद तक जिम्मेदार है।
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कोट
बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए कुपोषित बच्चों को चिन्हित करके उन्हें पोषण युक्त आहार देने के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराने का कार्य अनवरत रूप से जारी है।
डा. अजय भारती, सिविल सर्जन जमुई

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