हिन्दी साहित्य में बांग्ला साहित्यकारों का अवदान विषय पर संगोष्ठी



संसू, फारबिसगंज (अररिया): इंद्रधनुष साहित्य परिषद, फारबिसगंज के तत्वावधान में हिन्दी साहित्य में बांग्ला साहित्यकारों का अवदान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। द्विजदेनी स्मारक उच्च विद्यालय परिसर में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी और मैथिली के वरिष्ठ कवि एवं पंचवटी सांस्कृतिक, साहित्यिक मंच के अध्यक्ष सुरेश कंठ ने की। जबकि कार्यक्रम का संचालन परिषद् के संस्थापक सचिव विनोद कुमार तिवारी द्वारा किया गया।
संगोष्ठी में सर्वप्रथम सभाध्यक्ष श्री कंठ ने विषय प्रवेश करते हुए विश्व कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। कहा भारत एवं बांग्लादेश दोनों देश के राष्ट्रीय गीत के रचयिता रवीन्द्र नाथ ठाकुर को उनकी पुस्तक गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। वे एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। बताया बाल में रविन्द्र की प्रेरणा से अनुप्राणित होकर हिदी साहित्य भी समृद्ध हुआ है। बाल साहित्यकार हेमन्त यादव शशि, ने बताया कि ईश्वर चन्द विद्यासागर उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद्, लेखक और अनुवादक थे। वे नारी शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने कई किताबें लिखी जो दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती थी। उनकी सबसे लोकप्रिय किताबों में एक बेताल पंचबिसती भारतीय पृष्ठभूमि वाली किवदंतियों और कहानियों का एक संग्रह है। उनकी रचनाएं हिदी सहित अन्य कई भाषाओं में अनूदित हुए। वहीं सुरेन्द्र प्रसाद मंडल ने बताया कि शरत् चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं लघु कथाकार थे। वे बांग्ला के सबसे लोकप्रिय उपन्यासकार भी थे। उनकी अधिकांश कृतियों में गांव के लोगों की जीवनशैली, उनके संघर्ष एवं उनके द्वारा झेले गए संकटों का वर्णन है। इसके अलावा उनकी रचनाओं में तत्कालीन बंगाल के सामाजिक जीवन की झलक मिलती है। शरतचंद्र के कहानी और उपन्यास हिन्दी में भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितना बांग्ला में। उनकी रचनाओं पर तो हिदी में कई हिट फिल्में भी बन चुकी हैं।

हर्ष नारायण दास ने कहा कि सती नाथ भादुड़ी बांग्ला के प्रसिद्ध उपन्यासकार एवं राजनीतिज्ञ थे। वे लोक संस्कृति के चितेरे तो थे ही लोक संघर्ष से भी गहरे तौर पर जुड़े हुए थे। सतीनाथ ने विशेष कर हिदी वलय की पटभूमि में उपन्यास, लघुकथा और निबंधों की रचना की। हिन्दी सेवी अरविन्द ठाकुर ने बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के बारे में बताया कि वे बांग्ला भाषा के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत का राष्ट्रगान वन्दे मातरम् उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रांतिकारियों का प्रेरणा स्त्रोत बन गया था। आनंद मठ उनका प्रसिद्ध राजनैतिक उपन्यास है। उनकी कृति से प्रेरित कई हिदी साहित्यकार अपनी उर्वर रचनाएं की। वहीं विनोद कुमार तिवारी ने बताया कि आशापूर्णा देवी बांग्ला भाषा की प्रसिद्ध साहित्यकार हुई। 1976 में प्रथम प्रतिश्रुति के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली महिला साहित्यकार बनी। उन्होंने कहा आशापूर्णा देवी की लेखनी से प्रभावित होकर हिदी के कई साहित्यकारो ने कहानियां लिखी। जबकि हरि शंकर झा ने लीला मजुमदार के बारे में बताय और कहा उन्होंने बच्चों के लिए विनोदपूर्ण कहानियों के अलावा जासूसी, भूत-प्रेत की कहानियां भी लिखी। उन्होंने रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी भी लिखी। प्रो. सुधीर सागर ने कहा कि बांग्ला की सम्पूर्ण सुकुमारता लेकर हिन्दी में उषा देवी मित्रा का व्यक्तित्व एक महान कलाकार जैसा था। उन्होंने हिन्दी उपन्यास और कहानी साहित्य को एक नई दिशा दी। परंतु उन्हें साहित्य साधना का अपेक्षित श्रेय नहीं मिल सका जिसका उन्हें दंश और पीड़ा थी। इसलिए दु:खी मन से उन्होंने कहा था की मेरा सम्पूर्ण साहित्य मेरे साथ चिता में जला देना। हिन्दी उपन्यास और कहानी साहित्य के विकास में कहीं इनका नामोल्लेख तक नहीं मिलता। जबकि इन्होंने तेरह उपन्यास और अस्सी से अधिक कहानियां लिखी थी। सभी वक्ताओं ने कहा कि इस तरह देखा जाए तो हिदी साहित्य को समृद्ध करने में बांग्ला साहित्यकार एवं उनकी रचनाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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