जिले में जैसे -तैसे हो रही मिट्टी की जांच, लक्ष्य किया जा रहा पूरा

जागरण संवाददाता, सुपौल: जिले में जैसे -तैसे मिट्टी की जांच कर वार्षिक लक्ष्य को पूरा किया जा रहा है। इसका कारण है कि मृदा प्रयोगशाला में रासायनिक विश्लेषक जैसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए सृजित किए गए पद सहायक निदेशक रसायन वर्षों से अतिरिक्त प्रभार में चल रहा है। सहायक अनुसंधान पदाधिकारी के 4 में से 3 पद रिक्त पड़े हैं। विभाग इन कार्यों के लिए कृषि समन्वयक को महज 5 दिनों का प्रशिक्षण दिलाकर उन से काम ले रहे हैं। 5 दिनों का प्रशिक्षण देकर उन्हें बड़े-बड़े रासायनिक अभिक्रिया का जिम्मा सौंप रखा है। जाहिर सी बात है कि जिले में मिट्टी जांच के नाम पर या तो खानापूर्ति हो रही है या फिर किसानों को समय से स्वाइल हेल्थ कार्ड उपलब्ध नहीं हो पाता है। हालांकि यह दीगर बात है कि विभाग हर वित्तीय वर्ष का लक्ष्य पूरा कर लेता है। मिट्टी जांच को लेकर विभाग इस वर्ष जिले के सभी प्रखंडों के पांच राजस्व ग्राम में से 12500 मिट्टी नमूने की जांच करने का लक्ष्य दिया है। लक्ष्य के अनुरूप विभाग ने इतने ग्रीड निर्माण भी कर लिए हैं। जिनमें से 2756 मिट्टी के नमूने प्रयोगशाला को प्राप्त हो चुके हैं। परंतु इकट्ठे नमूने की सही सही जांच रिपोर्ट किसानों को मिल पाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है।

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कर्मियों का है घोर अभाव
जिले में जब से मिट्टी जांच प्रयोगशाला की स्थापना की गई है तब से ही यहां कर्मियों का घोर अभाव रहा है। फिलहाल वर्तमान मे इसमें इजाफा ही हुआ है। खासकर मिट्टी जांच कार्य में जिन विशेषज्ञों के जिम्मे मिट्टी में छुपे पोषक तत्वों की कमी या अधिकता को जानने के विशेषज्ञ माने जाते हैं अर्थात सहायक निदेशक रसायन का पद वर्षों से खाली चल रहा है। वर्तमान में इस पद को अतिरिक्त प्रभार के बूते जैसे तैसे चलाया जा रहा है ।इसके अलावा सहायक अनुसंधान पदाधिकारी के चार पद में से एक अधिकारी ही पदस्थापित हैं। प्रयोगशाला सहायक के पद भी रिक्त हैं ।इसके अलावा लिपिक का पद भी अतिरिक्त प्रभार में संचालित हो रहा है। जबकि प्रयोगशाला सेवक के 2 पद में से एक पद पर ही कर्मी उपलब्ध है।
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बिगड़ रही मिट्टी की संरचना
किसान खेतों में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करते हैं । जिससे मिट्टी की संरचना बिगड़ रही है। विशेषज्ञ तो यहां तक बताते हैं कि यही स्थिति रही तो खेत बंजर भी हो सकती है ।इसे देखते हुए मिट्टी जांच की व्यवस्था की गई है। सरकार द्वारा जांच के बाद मृदा स्वास्थ्य कार्ड भी बांटे जाते हैं। मिट्टी की जांच से यह पता चलता है कि खेतों में किस तत्व की कमी है। इस रिपोर्ट को देखने के बाद कृषि विज्ञानी खेतों में डाले जाने वाले रसायन की अनुशंसित मात्रा तय करते हैं। लेकिन जांच की स्थिति सही नहीं रहने से किसान इस लाभ से वंचित हो जा रहे हैं।

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