महिलाओं ने चखा सफलता का स्वाद, लिख रही नई-नई कहानी

बक्सर : सिर पर साड़ी का पल्लू, आंखों में आत्मविश्वास एवं कार्य करने की क्षमता के बदौलत इलाके की महिलाएं सफलता की नई कहानी लिख रही है। पशुपालन कार्य से जुड़ कर महिलाएं न सिर्फ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं बल्कि पुरुष वर्चस्व को भी चुनौती दे रही है। अभी तक डेयरी व पशुपालन के क्षेत्र में पुरुषों का ही वर्चस्व था, लेकिन घूंघट की ओट से निकल कर अब चौंगाई के खपरैला मोहल्ला की महिला आशा देवी पशुपालन के क्षेत्र में साहस दिखा रही है।

दरअसल पशुपालन कर यह महिला न सिर्फ अपनी जिदगी संवार रही है, बल्कि महिला सशक्तीकरण की मिसाल भी कायम कर रही है। इस महिला पशुपालक से सबक लेकर कई ऐसे परिवार की महिलाएं अपनी ही नहीं बल्कि अपनों की तकदीर संवार रही हैं। पशुपालन के माध्यम से रोजगार के अवसर मिले, तो इनके मुरझाए चेहरे पर खुशी दिखने लगी है। पशुपालन से बच्चों का भरण-पोषण हो रहा है ।

लोगों ने खड़े किए थे सवाल, अब आते हैं पूछने
आशा देवी कहती है कि शुरू-शुरू में इस कार्य को करने में कुछ लोगों की नजर में हंसी का पात्र बनना पड़ा। गांव की बहु होकर पशुपालन कैसे करे खुद सोचना पड़ता था और जब आज अपने काम में सफल हो रहे हैं तो यही लोग अब पूछने आते हैं कि कैसे पशुपालन काम शुरू किया और इसकी प्रक्रिया क्या है। यह महिला गांव में पशुपालन के साथ साथ अकेले अपने दम पर जीविका में जुड़ कर नौकरी भी करती हैं।
भरण पोषण में मिल रहा है सहयोग
आर्थिक अभाव के कारण कुछ दिन पहले कुल चार बाल-बच्चों के भरण-पोषण में फटेहाली की समस्या आ गई थी। पशुपालक आशा देवी के पति कृष्णा यादव कृषि कार्य और मजदूरी करते हैं। आशा देवी का कहना है कि पति की मजदूरी की बदौलत बाल बच्चों के पढ़ाई लिखाई और भरण-पोषण संभव नहीं था। तब सोचा कि क्यों नही पशुपालन को जीविका का आधार बनाया जाए। पिछले डेढ़ दशक से इनके पास बढियां नस्ल की चार-पांच दुधारू मवेशी हैं। इनके मेहनत की बदौलत जो दुग्ध उत्पादन होता है, उससे प्रति माह आसानी से पन्द्रह हजार रूपए तक की कमाई हो जाती है।
कुछ और करने का है इरादा
पशुपालन जैसे काम में जीविका दीदी आशा देवी खुद को साबित करने के बाद चौगाईं सहित अन्य कई गांवों में महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी है। इस महिला के लिए एक खुशी की बात यह भी है कि अब पशुपालन के साथ-साथ अकेले अपने दम पर जीविका परियोजना से जुड़कर न सिर्फ नौकरी करती है बल्कि अन्य महिलाओं को पशुपालन के लिए उत्प्रेरित करती है। फिलहाल इस कोरोना संक्रमण काल में पशुपालन इस परिवार के लिए जीने का सहारा बना है।
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फिलहाल इलाके में ज्यादातर महिलाएं पशुपालन और मुर्गी पालन का कार्य कर आत्मनिर्भर बन रही है। ऐसी महिलाओं को समूह में जोड़ा जा रहा है, ताकि अन्य महिलाएं भी जुड़ कर अपना और अपने बाल बच्चों का भरण पोषण आसानी पूर्वक कर सकें।
राजीव रंजन, बीपीएम, चौगाईं

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