लोकगीतों से गूंज रहे नव दंपतियों के घर-आंगन

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल) : सावन आते ही मिथिलांचल में विभिन्न पर्व त्योहारों का दौर शुरू हो जाता है। ऐसा ही महत्वपूर्ण लोक पर्व है मधुश्रावणी। मधुश्रावणी पर्व मिथिलांचल की अनेक सांस्कृतिक विशिष्टताओं में से एक है। इसे नवविवाहिताएं आस्था और उल्लास के साथ मनाती है। मिथिलांचल में नवविवाहिताओं द्वारा यह व्रत अपने सुहाग की रक्षा एवं गृहस्थाश्रम धर्म में मर्यादा के साथ जीवन निर्वाह हेतु रखा जाता है। इस पर्व में प्रतिदिन नवविवाहिताएं प्रकृति के अछ्वुत अनुपम भेंट यथा पुष्प-पत्र इत्यादि को एकत्रित करती है तथा मिट्टी के नाग-नागिन, हाथी इत्यादि बनाकर दूध-लावे के साथ विशेष पूजन के द्वारा कथा भी श्रवण करती हैं, जो जीवन में एक अछ्वुत यादगार क्षण के रूप में सदा के लिए प्रतिष्ठित हो जाता है। इस पर्व को लेकर आजकल नव दंपतियों के घर-आंगन लोक गीतों से गूंज रहे हैं। टोल-पड़ोस की महिलाएं पहुंचकर लोकगीतों से पर्व की महत्ता बताती हैं। मान्यता है कि वैदिक काल से ही मिथिलांचल में पवित्र सावन मास में निष्ठापूर्वक नाग देवता की पूजन करने से दंपती की आयु लंबी होती है। मधुश्रावणी व्रत का महात्म बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि 14 दिनों तक चलने वाला यह व्रत एवं पूजन टेमी के साथ विश्राम होता है। यह पर्व नव दंपतियों के लिए एक तरह से मधुमास है। इस बार इस पर्व का 31 जुलाई को विश्राम हो जाएगा। इस मधुश्रावणी पर्व में गौरी शंकर की पूजा तो होती ही है साथ ही साथ विषहरी एवं नागिन की भी पूजा होती है। साथ ही आचार्य ने बताया कि इस बार सिद्ध योग में मधुश्रावणी व्रत होगा, जो नवविवाहितों को समस्त प्रकार की सिद्धियां प्रदान करेगी।

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ससुराल से भेजे गए अन्न ही करती है ग्रहण
आचार्य ने बताया कि प्रथा है कि इस पर्व के दौरान नवविवाहिता ससुराल से आए हुए कपड़े और गहने ही पहनती हैं और भोजन, फलाहार इत्यादि भी वहीं से भेजे गए अन्न का करती हैं। पहले और अंतिम दिन की पूजा बड़े विस्तार से होती है। पूजन उपरांत विशिष्ट ज्ञानी महिलाओं के द्वारा कथा सुनाई जाती है, जिसमें शंकर-पार्वती के चरित्र के माध्यम से पति पत्नी के बीच होने वाली बातें, नोकझोंक, रूठना-मनाना, प्यार इत्यादि की कथाएं सुनाई जाती है ताकि नव दंपति इस परिस्थितियों में धैर्य रखकर सुख में जीवन बिताएं। पूजन के अंत में नवविवाहिता सभी सुहागिनों को अपने हाथों से खीर का प्रसाद तथा पिसी हुई मेहंदी बांटती है। अंतिम दिन चार स्थानों पर नवविवाहिताओं को टेमी से दागा जाता है जिससे चार पुरुषार्थ या चार प्रकार के फल धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। टेमी दागने का एक कारण यह भी है कि किसी भी परिस्थितियों में नवविवाहिताएं धैर्य धारण कर गृहस्थाश्रम रूपी जीवन सफल रूप से संचालित कर सकें।

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