19वीं सदी तक ज्योतिष विज्ञान का केंद्र रहा कोसी

कुंदन मिश्रा मनमन, महिषी (सहरसा): वेद के छह अंग में छठा ज्योतिष विज्ञान है। इसे समय का विज्ञान कहा जाता है। तिथि, नक्षत्र, योग और कर्म का अध्ययन कर भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी इस विज्ञान के माध्यम से दी जाती है।

कोसी का इलाका 16वीं से 19वीं सदी तक इस विज्ञान का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां ज्योतिष विज्ञान का पाठशाला संचालित होता था। यहां के ज्योतिष राजा हरि सिंह के दरबार का शोभा बढ़ा चुके हैं, लेकिन यह वर्तमान में उपेक्षित है।
----
1937 में प्रकाशित हुआ था हस्तलेख : वर्ष 1937 में बिहार रिसर्च सोसाइटी द्वारा संग्रहित ज्योतिष विज्ञान से संबंधित 430 हस्तलेखों को प्रकाशित किया गया था जिनमें से 300 से अधिक कोसी क्षेत्र के विभिन्न गांव से संकलित किए गए थे। संकलित हस्तलेख 16वीं से 20वीं सदी के थे।
स्वयं सहायता समूहों के बीच 14 करोड़ 77 लाख का वितरण यह भी पढ़ें
----
दो पाठशाला
क्षेत्र में ज्योतिष विज्ञान के दो पाठशाला हुआ करता था। कोसी क्षेत्र में ज्योतिष विज्ञान के गणित एवं फलित दोनों विद्याओं का विस्तार समान रूप से था। महामहोपाध्याय बापूदेव शास्त्री के शिष्य स्वर्गीय जलधर झा के कार्यकाल में इस विद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर मधेपुरा के दयानंद झा, चैनपुर के गंगाधर मिश्र, बनगांव के बलदेव मिश्र ने ज्तोतिष विज्ञान में काफी प्रसिद्धि प्राप्त की जबकि ज्योतिष विद्यालय कर्णपुर (वर्तमान में सुपौल जिला ) फेकन पाठक के कार्यकाल में अपने प्रसिद्धि के चरम पर था। विद्यालय के छात्र महिषी के केशव चौधरी ,गोनर ठाकुर, बनगांव के देव नारायण झा, बघवा के हरि झा, सहित मुरलीधर ठाकुर, पंचानंद झा, चंद्रेश्वर झा, गोविन्द लाल झा, रज्जू झा सहित अन्य काफी प्रसिद्ध हुए।
जानकारों का मानना है कि 16वीं सदी से 19वीं सदी का काल कोसी क्षेत्र में ज्योतिष विज्ञान की शिक्षा के लिए स्वर्णिम काल माना जाता है।
---
महिषी के केशव चौधरी कश्मीर महाराजा के दरबार में थे पंडित
केशव चौधरी के वंशज महिषी के राकेश चौधरी ने बताया कि केशव चौधरी एक बार अपने भ्रमण के दौरान कश्मीर के राजा हरि सिंह के राजदरबार में पहुंच गए। परिचय के उपरांत उनके गणना एवं फलित की जानकारी से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें अपने दरबार का प्रमुख पंडित बना दिया।
----
क्या कहते हैं ज्योतिष के जानकार
महिषी के ज्योतिषी जवाहर पाठक ने बताया कि नक्षत्र, योग, दंड, पहर का जीव और प्रकृति पर असर पड़ता है। इसकी गणना और उसके गणना के आधार पर फलित की जानकारी दी जाती है। विज्ञान के इस युग में प्राचीन विज्ञान की इस विद्या को लोग भूलते चले जा रहे हैं।
----
महाविद्यालय को नहीं मिलते
हैं ज्योतिष पढ़ने वाले छात्र
इस संबंध में महिषी स्थित श्रीउग्रतारा भारती मंडन संस्कृत महाविद्यालय के प्रो. नंदकिशोर चौधरी ने बताया कि इस महाविद्यालय में वर्ष 2003 के बाद ज्योतिष विज्ञान के शिक्षक का पदस्थापन नहीं हो सका है। महाविद्यालय में ज्योतिष विज्ञान के एक भी छात्र नामांकित नहीं है। संस्कृति विश्व विद्यालय में इस विषय के पढ़ाई का प्रावधान होने के बावजूद शिक्षक के अभाव में महिषी संस्कृत महाविद्यालय में ज्योतिष विषय की पढ़ाई नहीं हो पाती है।

अन्य समाचार