लोगों की थाली से गुम हुई देसी सुगंधित चावलों की खुशबू

संसू ,महिषी (सहरसा) : अधिक उत्पादन के लोभ में किसानों ने देसी नस्ल के बीजों की जगह हाइब्रीड नस्ल के धानों की खेती शुरू कर दी। नतीजा जिस खुशबूदार धान की खेती लोग घरों में होने वाले शुभ कार्यों को ध्यान में रखकर किया करते थे आज खेतों से गायब हो गए हैं।

इनमें से कुछ धान तो ऐसे भी होते थे जिनके पौधे से भी खुशबू निकलती थी और जिस खेत में ये धान लगाए जाते थे वहां का इलाका ही खुशबूदार हो जाता था। कुछ धान तो इतने महीन हुआ करता था कि अगर नाक से छोड़ी गयी तेज सांस में भी उड़ जाते थे। आज ऐसे सभी देशी खुशबूदार धान किसानों के भंडार से गायब हो चुके हैं ।

ऐसा भी नहीं है ऐसे खुशबूदार धान सिर्फ ऊपरी इलाकों में ही उपजाए जाते थे बल्कि निचले इलाकों के लिए
भी सतरिया ,मलीद्दा जैसे मोटे खुशबूदार धान की नस्लें किसानों के पास थी। ऊपरी जमीन पर तुलसी मंजरी ,कनक जीर जैसे महीन धान भी खेतों से लेकर आम लोगों की थाली तक खुशबू बिखेरती थी।
आज भी हाइब्रीड नस्ल की धानों में खुशबूदार धान पाए जाते हैं परंतु देसी नस्ल की खुशबू की बात ही अलग थी। इस संबंध में किसान जवाहर चौधरी ,विनय ठाकुर ,ईनर चौधरी ,ललन मिश्र बतलाते हैं कि गांव में अगर किसी के बेटी की शादी होती थी तो महीन खुशबूदार धान के चावल बाराती की थाली में परोसे जाते थे लेकिन मोटे खुशबूदार धान अक्सर किसान खुद अपने घरों में पपयोग के लिए उपजाया करते थे।

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