पूर्णिया के इस मंदिर के चलते मंगलवार को बंद रहता है असम में मां कामरुप कामाख्या का पट



प्रकाश वत्स, पूर्णिया: विश्व प्रसिद्ध असम के मां कामरुप कामाख्या मंदिर का अनूठा जुड़ाव बिहार के पूर्णिया जिला स्थित एक मंदिर से है। केनगर प्रखंड के भवानीपुर-मजरा गांव स्थित मां कामाख्या स्थान मंदिर के चलते ही असम के कामरुप कामाख्या मंदिर का पट हर मंगलवार को बंद रहा है। सनातन से यह मान्यता रही है कि मंगलवार को मां कामाख्या पूर्णिया स्थित इस मंदिर में ही विराजमान रहती है। यही कारण है कि यहां मंगलवार को बिहार ही नहीं अन्य प्रदेशों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और मां की पूजा अर्चना करते हैं। हर मंगलवार इस मंदिर में श्रद्धालुओं का मेला लगता है और दिन भर शंख ध्वनि से मंदिर गूंजता रहता है। शक्ति पीठ के चलते सावन में भी यहां लोगों की भीड़ जुटती है। दिव्य सुंदरी दो बहनों की कथा से जुड़ी है मंदिर की स्थापना की कहानी शक्ति पीठ के रुप में प्रसिद्ध पूर्णिया के केनगर प्रखंड स्थित मां कामाख्या मंदिर की स्थापना की कहानी दो दिव्य सुंदरी बहनों की कथा से जुड़ी हुई है। मंदिर के पंडित पवन झा व पंडित गौरीकांत झा ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना का इतिहास नौ सौ साल पुराना है। मजरा गांव में भागीरथ झा नामक एक गरीब ब्राह्णण हुआ करते थे। उनकी दो बेटी श्यामा व सुंदरी दिव्य सुंदरी थी। उसी गांव में एक प्रभावशाली व्यक्ति मणिक फौजदार पासवान थे। भागीरथ झा ने मणिक फौजदार से काफी कर्ज लिया था और कर्ज न चुकाने की स्थिति में अपनी दो बेटियों की शादी अपने दो बेटों से करने की शर्त रखी थी। इस स्थिति से विचलित भागीरथ झा सीधे असम स्थित कामरुप कामाख्या मंदिर चले गए और मां से इसका निदान निकालने की गुहार लगाने लगे। साथ ही मां से अपने गांव जाने की जिद पर भी अड़ गए। कहा जाता है कि मां ने उन्हें दर्शन भी दिया और एक पिडी के रुप में साथ चलने का भरोसा भी दिया। भागीरथ झा पिडी लेकर यहां आ गए और उसे मौजूदा मंदिर परिसर में ही एक पीपल के पेड़ के नीचे रख दिया। इधर मां के आदेशानुसार भागीरथ झा ने मणिक फौजदार को शादी की तैयारी करने की बात कही। कहा जाता है कि मां की माया के चलते मणिक फौजदार के दो बेटे भागीरथ झा की छोटी बेटी सुंदरी से ही विवाह करने की बात पर अड़ गए। यह विवाद इतना तूल पकड़ लिया कि दोनों बेटे सहित सभी बारातियों की भी आपस में लड़ने से मौत हो गई। परिसर में बने हैं मणिक फौजदार व श्यामा-सुंदरी के भी मंदिर प्रचलित कथा के अनुसार इस वाकया के बाद मणिक फौजदार को यह एहसास हुआ कि उसने भागीरथ झा के साथ गलत कर दिया। इस पर वे भागीरथ झा से माफी मांगने पहुंच गए। इस पर भागीरथ झा ने मां कामाख्या को यहां लाने की बात बताई और उनसे माफी मांगने की बात कही। इस पर मणिक फौजदार भी मां की पिडी के साथ पहुंच अराधना पर जुट गए। इस पर मां ने उन्हें भी अपने शरण में ले लिया। बाद में उनका मंदिर भी परिसर में बना। इधर श्यामा-सुंदरी भी तत्क्षण ही मां की अनुमति से पाताल सिधार गई। उक्त स्थल पर उन दोनों बहनों की मंदिर भी मौजूद है। इसके अलावा इस परिसर में एक मुख्य मंदिर मां कामाख्या की है। इसके अलावा एक शिव मंदिर व एक बजरंगबली का मंदिर है। कहा जाता है कि जिस समय मां कामाख्या असम से पूर्णिया पहुंची थी, उस दौरान ही असम के पुजारियों को स्वप्न में यह संदेश मिला था कि हर मंगलवार को मां पूर्णिया के इस मंदिर में रहेगी। इसका अनुपालन असम स्थित मंदिर में आज भी हो रहा है। वहां मंगलवार को पट बंद रहता है और लोगों को यह जानकारी दी जाती है कि आज मां पूर्णिया के कामाख्या स्थान में विराजमान है। ठाढ़ी व्रत से मंदिर को मिली खास पहचान, पिड की होती है पूजा इस मंदिर से उत्तर बिहार की एक अनूठी पूजा पद्धति जुड़ी हुई है। मंदिर की प्रसिद्धि असम की कामरुप कामाख्या मंदिर की तरह शक्तिपीठ के रुप में है। मान्यता है कि असम में मां के कमर से नीचे के अंश की पूजा होती है और यहां कमर से उपर भाग देवी का विराजमान रहता है। लोगों में यह भी विश्वास है कि यहां मांगी गई मन्नत हर हाल में पूरी होती है। इसके लिए यहां मंगलवार को लोगों की भीड़ जुटती है। कुल लोग मन्नत पूरा होने पर बकरे की बलि देते हैं तो कोई ठाढ़ी व्रत रखकर मां की पूजा-अर्चना करते हैं। ठाढ़ी व्रत छठ की तरह ही चारदिवसीय कठिन अनुष्ठान होता है। वसंत पंचमी के प्रथम रविवार को इस मंदिर में ठाढ़ी व्रत मेला लगता है। इसमें चार दिन से निर्जला उपवास में रहने वाली महिलाएं सिर पर दीप जलाकर मंदिर की परिक्रमा करती है और फिर समीप में स्थित तालाब में स्नान कर इसका समापन करती है। यहां अब भी पिड की ही पूजा होती है। आज तक मां की प्रतिमा को आकार नहीं दिया गया। साढ़े सात एकड़ में फैला है परिसर, पर्यटन केंद्र के रुप में हो रहा विकसित पूर्णिया: स्थानीय लोगों के अनुसार भागीरथ झा ने जिस परिसर में असम से लाए पिड को रखा था, वह मजरा गांव के ही काशीनाथ झा की थी। भागीरथ झा ने बाद में काशीनाथ झा को पूरे वाकये की जानकारी दी। इस पर काशीनाथ झा ने तत्काल साढ़े सात एकड़ जमीन मंदिर को दान दे दी और इसे मंदिर परिसर में सजाने का भरसक प्रयास किया। अब क्षेत्र की विधायक सह बिहार सरकार की मंत्री लेशी सिंह ने इस मंदिर के विकास को नया फलक देने का हर जतन कर रही। पूर्व में यहां एक करोड़ 49 लाख से विवाह भवन सहित अन्य कार्य कराए गए। फिलहाल पर्यटन विभाग के सौजन्य से दो करोड़ 14 लाख की लागत से यहां विकास कार्य चल रहा है। पूर्व मंत्री सह बनमनखी विधायक कृष्ण कुमार ऋषि ने इसकी आधारशिला रखी थी। इसके लिए सांसद संतोष कुशवाहा भी प्रयत्नशील रहे थे। इससे पूर्व शहर के बड़े उद्योग पति डीएन चौधरी के सौजन्य से चाहरदिवारी व मुख्य गेट का निर्माण कराया गया था। इसके अलावा कई अन्य लोगों का सहयोग भी मंदिर के विकास में रहा है। इस वर्ष मंत्री लेशी सिंह के प्रयास से आयोजित तीन दिवसीय कामाख्या महोत्सव ने इस मंदिर की प्रसिद्धि को नया आयाम दिया।

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