कोसी की रेत लखनऊ में बिखेरेगी खुशबू

राजेश राय पप्पू, नवहट्टा, (सहरसा) : कोसी की रेत अब सुगंध फैलाएगी। इसकी सुगंध से लखनऊ तक महकेगा। लखनऊ की एक हर्बल कंपनी ने कोसी के किसानों से मैंथा की खेती के लिए करार किया है। यह देख कोसी के किसानों ने अब इसकी खेती शुरू की है।

पारंपरिक खेती से खस्ताहाल हुए कोसी के किसानों ने मैंथा खेती की ओर हाथ बढ़ाया है। इस खेती से खुशहाल होने की उम्मीद जगी है। इसके तेल का उपयोग सुगंध के लिए और औषधि बनाने में किया जाता है। बकुनियां में आधा दर्जन किसानों से हिदुस्तान हर्ब नामक कंपनी ने करार किया है।

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मानसून से पहले कट जाता है फसल : मैंथा की खेती क लिए बलुई दोमट और मटियारी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। मेंथा की जड़ों की बुआई का सही समय 15 जनवरी से 15 फरवरी है। देर से बुआई करने पर तेल की मात्रा कम हो जाती है व कम उपज मिलती है। देर से बुआई हेतु पौधों को नर्सरी में तैयार करके मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक खेत में पौधों की रोपाई अवश्य कर देनी चाहिए। जून माह में फसल कट जाती है। उसके बाद कोसी नदी में बाढ़ आने के बावजूद इसपर कोई असर नहीं पड़ता।
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सुगंध व औषधि में उपयोग
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मैंथा तेल का उपयोग सुगंध व औषधि बनाने में किया जाता है। मैंथा आयल का भाव 1200 रुपये 1800 रुपये किलोग्राम के आसपास रहने से किसानों की आमदनी बढ़ेगी। इसकी वजह से किसानों ने मैंथा की खेती शुरू की है। एक एकड़ में किसानों को मैंथा की खेती पर करीब 30 हजार रुपये की लागत आती है। जबकि करीब एक लाख का मैंथा आयल पैदा होता है। इस तरह से प्रति एकड़ करीब 70 हजार रुपये की कमाई होगी। इसके अलावा आवारा पशुओं से भी नुकसान काफी कम होता है, क्योंकि ज्यादातर जानवरों को पुदीना का स्वाद नहीं भाता है।
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क्या कहते हैं किसान
बकुनियां में पहली बार किसान मैंथा की खेती के लिए आगे आए हैं। यहां के किसान चंद्रदेव यादव कहते हैं कि हमने एक एकड़ खेत में इस मेंथा की खेती का करार किया है। इसमें लगभग 20-25 हजार रुपये की लागत लगेगी। अगर बारिश की मार न हुई तो एक एकड़ में एक लाख रुपये की फसल बिक जाएगी जिसका हमें अच्छा मुनाफा होगा। गांव के अन्य किसान उदय यादव बताते हैं कि मैंथा की मांग देश और विदेश में बहुत है। पड़ोस के दरभंगा जिले में यह खेती पहले से हो रही है। यहां व्यापारी खुद आता है और रेट तयकर ले जाता है।
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कोट
90 दिनों में तैयार होने वाली यह फसल किसान के हालात बदल सकते हैं।
बीके. मिश्रा, कृषि समन्वयक

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