नागलोक में विशिष्ट उत्सव का दिन है नाग पंचमी : आचार्य

-नागपंचमी आज, पूजा करने से नहीं रहता सर्प का भय

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल) : श्रावण मास की शुक्ल पंचमी तिथि नागदेवता को अत्यंत प्रिय है। इस दिन नागलोक में विशिष्ट उत्सव होता है। पंचमी तिथि को जो व्यक्ति नागों को दूध से स्नान कराता है। उसके कुल में वासुकी, तक्षक, कालिय, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक तथा धनंजय से बड़े-बड़े नाग अभयदान देते हैं। साथ ही उसके कुल में सर्प का भय नहीं रहता है। इस बार नाग पंचमी मंगलवार यानि 2 अगस्त को है। नागपंचमी का महात्मय बताते हुए त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि एक बार स्वमाता के श्राप से नागलोक जलने लगा था। इसलिए उस दाह की व्यथा को दूर करने के लिए नाग पंचमी को गाय के दूध से नागों को आज भी लोग स्नान कराते हैं। इससे सर्पों का भय नहीं रहता है। वहीं एक और प्रचलित कथा का वृतांत सुनते हुए आचार्य ने कहा कि एक बार राक्षसों व देवताओं ने मिलकर समुद्र का मंथन किया। उस समय समुद्र से अतिशय श्वेत उच्चै:श्रवा नामक एक अश्व निकला उसे देखकर नागमाता कद्र ने अपनी सौत विनता से कहा कि देखो, यह अश्व श्वेत वर्ण का है। परंतु इसके बाल काले दिखाई पड़ते हैं। तब विनता ने कहा कि न तो यह अश्व श्वेत वर्ण है, न काला है और न ही लाल है। इसपर कद्रू ने कहा कि शर्त करो कि यदि मैं इस अश्व के बालों को कृष्ण वर्ण का दिखा दूं तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकूं तो मैं तुम्हारी दासी हो जाउंगी। इसके बाद कद्रू ने अपने पुत्र नागों को बुलाकर शर्त का वृतांत बता दिया तथा कहा कि पुत्रों तुम अश्व के बाल के समान सूक्ष्म होकर उच्चै:श्रवा के शरीर में लिपट जाओ। जिससे यह कृष्ण वर्ण का दिखाई देने लगे, ताकि मैं अपने सौत विनता को अपनी दासी बना सकूं। इस पर नागपुत्रों ने कहा कि माता यह छल हमलोग नहीं करेंगे। चाहे तुम्हारी जीत हो या हार। क्योंकि छल से जीतना अधर्म है। इस पर माता कद्रू ने श्राप दे दिया और कहा पांडवों के वंश में उत्पन्न राजा जनमेजय जब सर्प यज्ञ करेंगे तब उस यज्ञ के अग्नि कुंड में तुम सब जल जाओगे। नागगण माता का श्राप सुनकर वासुकी को साथकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे तथा उन्हें सारी बातें बताई। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि वासुके चिता मत करो और ध्यान से मेरी बातें सुनो। यायावर वंश में तपस्वी जरत्कारू नामका ब्राह्मण उत्पन्न होगा। उस ब्राह्मण के साथ तुम अपनी बहन का विवाह कर देना एवं उसके कहे हुए वचन को स्वीकार कर लेना। उससे आस्तिक नामका विख्यात पुत्र जन्म लेगा जो जनमेजय के सर्प यज्ञ को रोकेगा तथा तुमलोगों की रक्षा करेगा। यही बात कृष्णजी ने भी युधिष्ठिर से कही थी। ब्रह्माजी ने सावन शुक्ल पंचमी के दिन यह वर दिया था और आस्तिक मुनि ने पंचमी को ही नाग सर्पों की रक्षा की थी। उसी दिन से ही नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की प्रथा चली आ रही है। नाग पंचमी का व्रत, पूजन एवं श्रद्धापूर्वक कथा सुनने वालों के कुल में कभी नाग का भय नहीं रहेगा तथा उत्तम लोक की प्राप्ति होगी।

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कैसे करें पूजा
नाग पंचमी के दिन अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिगल इस पांच नागों की पूजा होती है। इसलिए इस नागपंचमी कहते हैं। इस दिन घर के दोनों दरवाजे पर गोबर से नागों का रूप बनाकर उसे पूजन का विधान है। पूजन करनेवाले चतुर्थी को एक बार भोजन करें तथा पंचमी को दिनभर उपवास रखकर शाम में भोजन करें। जितेन्द्रिय वन वाणी संयम से रखें। दही, दूर्वा, कुश, गंध, दूध, पंचामृत, पुष्प, घी, फल, खीर से नागों की पूजा की जाती है। इस प्रकार जो विधि-विधान से पूजा करते हैं उन्हें और उनके कुल में सात पीढ़ी तक सर्पों से भय नहीं होता है।

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