कोसी की तलहटी से मिट रहा खास पटेर का अस्तित्व

संसू, नवहट्टा (सहरसा): कोसी नदी से प्रभावित इलाके खासकर पूर्वी कोसी तटबंध के अंदर हर साल बाढ़ और कटाव आम बात है। खेत में फसल का उत्पादन कोसी मैया की कृपा पर निर्भर करता था लेकिन कोसी के तलहटी पर तो कास-पटेर के जंगल उग आते थे। आधुनिकता के दौर में बदलते मौसमी परिवेश के कारण कास पटेर का भी अस्तित्व मिटने लगा है। बाढ़ के बाद कास-पटेर में फूल आने के बाद ही कास-पटेर की कटाई शुरू हो जाती थी। कास से लोग बाढ़ में बह गए घर तैयार करते थे। वहीं पटेर की चटाई खासकर महिलाएं बनाती थी। पटेर की बहुलता होने के कारण चटाई का निर्माण घर-घर होता था और इसे नाव पर लाद बेचने के लिए बाजार ले आते थे। धीरे-धीरे यह प्रसिद्धि बाहर फैली और इसके खरीदार बढ़ते गए। इलाके के लोगों के जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन रहा। समय के साथ-साथ इसके प्रसार में कमी आने लगी।


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कास पटेर के स्वरोजगार पर आश्रित था जीविकोपार्जन
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कोसी के लोगों की जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन कास पटेर का घास था। पटेर की बनी चटाई की मांग बाजार में काफी थी। एक परिवार के कई सदस्य मिलकर दिन भर में पांच छह चटाई तैयार करते थे। इसकी बिक्री हाट, बाजार में सौ सवा सौ तक में हो जाया करती थी। इससे एक परिवार को पांच से छह सौ आमदनी से जीविकोपार्जन चलता था। इस कारोबार पर विराम लग गया है। घरेलू उद्योग के विकास के प्रति सरकार ने कोई रुचि नहीं ली इसलिए आधुनिकता के दौर में दफन हो गया।
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धार्मिक और साहित्य ग्रंथों में कास की चर्चा
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धार्मिक एवं साहित्य ग्रंथ कास की चर्चा से अछूता नहीं रहा है। गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में दर्ज चौपाई में वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए लिखा है 'फूले कास सकल मही छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई' अर्थात कास नामक घास में फूल आ जाने पर वर्षा ऋतु का बुढ़ापा आने लगता है। अर्थात मानसून के समापन की बेला आ जाती है। भारतीय संस्कृति में कास में फूल आने को मानसून की विदाई का संकेत मानती है। इसका जिक्र ग्रंथों में भी है। नवहट्टा के प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि कास में फूल को देखकर ही हमारे पूर्वज वर्षा ऋतु की विदाई मान लेते थे और आनेवाली ठंड से निबटने की तैयारी शुरू कर देते थे। उन्होंने कहा कि जन्माष्टमी तक कास नामक घास में फूल आ जाते है तब यह माना जाता था कि अब बारिश जाने वाली है। 1952 साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु ने भी अपनी कई रचनाओं में कोसी के कास की चर्चा की है।
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कोसी के कटाव को भी रोकती कास
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कोसी इलाके में फैला कास का जंगल कटाव रोकने में कारगर साबित होता है। नदी के आसपास तलहटी और कछार पर नदी की धारा को निर्बाध बहने में अवरोध पैदा करती है। केदली के प्रशांत यादव ने बताया कि कास का उगना कम हुआ है। इस इलाके के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
जल संसाधन विभाग के कार्यपालक अभियंता शफी अहमद ने भी नदी के कछार में कटाव एवं धारा को मोड़ने के लिए कास के जंगल को उपयुक्त बताया।

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