पहले बाढ़ की तैयारी करता था हर परिवार

संसू, महिषी (सहरसा) : कोसी में बाढ़ आना कोई नई बात नहीं है। पहले भी कोसी नदी में बाढ़ आती थी और क्षेत्र के लोग बाढ़ आगमन का बेसब्री से इंतजार करते थे। बाढ़ जाने के बाद किसानों के खेत लहलहा उठते थे।जबकि उस समय बाढ़ का दायरा भी आज की तुलना में अधिक होता था ,आज जब नदी को दो बांधों के बीच समेट दिया गया। अब लोग बाढ़ की तैयारी सरकार और प्रशासन के भरोसे छोड़ देते हैं ।

इस संबंध बुजुर्ग नारायण राय ने बताया कि बांध के निर्माण से पहले होली का पर्व खत्म होते ही लोग बाढ़ पूर्व तैयारी में जुट जाते थे। खाद्यान्न का भंडारण, जलावन का भंडारण ,पशुचारा का भंडारण सभी को कड़ी धूप में सुखाकर भंडारण के लिए तैयार करने में महिलाएं जुट जाती थी। वैद्यनाथ झा ,शशिधर झा , भुखल मुखिया सहित अन्य ने बताया कि उस जमाने में कोसी क्षेत्र का शायद ही को व्यक्ति हो जिसे तैरना नहीं सिखाया जाता था , लोग आपात स्थिति में घंटों पानी में तैरने की क्षमता रखते थे।

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बाढ़ के हिसाब से लगायी जाती थी फसल
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वहीं सियाराम साह ने बताया कि उस समय के किसानों को ये अवश्य पता होता था कि किस खेत में कितना बाढ़ का पानी आता है। किसान इस बात का ख्याल रखते हुए सबसे निचले इलाकों में देसरिया ,और पनझाली ,बकोल ,जैसे तीन फीट तक पानी सहन करने वाले प्रभेद तथा ऊपरी इलाके में सुकला ,कनक जैसे प्रभेद के धान लगाते थे। जबकि अब जब बाढ़ सिमटकर तटबंध के भीतर तक रह जाती है लोग तैयारी के नाम पर प्रशासन का मुंह ताकते रहते हैं । गांव में नाव का भी उपयोग रुपये कमाने के लिए करते हैं । बाढ़ क्षेत्र में पहले की तरह बच्चों को तैराकी सिखाने में अभिभावक अब दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं । किसानों के पास पुराने देशी प्रभेद के बीज नहीं हैं। अब बाढ़ पूर्व तैयारी के लिए कास और बांस की व्यवस्था नहीं की जाती है। बस बाढ़ सहायता राशि पर निगाहें टिकाए रहते हैं।

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