अमेरिकी विशेषज्ञों ने देखा खेती का परिवर्तन व महिलाओं की भागीदारी

अमेरिकी विशेषज्ञों ने देखा खेती का परिवर्तन व महिलाओं की भागीदारी

संवाद सूत्र, हरनौत (नालंदा): अमेरिका के टाटा कार्नेल इंस्टीट्यूट (कार्नेल यूनिवर्सिटी, न्यूयार्क, यूएसए) के कृषि विशेषज्ञों की टीम मंगलवार को हरनौत के सरथा गांव पहुंची और यहां जलवायु अनुकूल खेती का प्रयोग देखा। विशेषज्ञों ने किसानों के साथ बैठक कर पिछले 10 साल में खेती-किसानी में आए परिवर्तन की जानकारी ली। यह भी पूछा कि खेती में महिलाओं की कितनी भागीदारी है। किसानों से खेती से संबंधित सभी चुनौतियों और निबटने के तौर-तरीके जाने। किसानों ने बताया कि खेती में महिलाओं का हस्तक्षेप नहीं है। पुरुष ही सब कुछ तय करते हैं। महिलाएं यदि घरेलू खपत के लिए दलहन और तिलहन लगाने को कहती हैं, तो उस पर विचार किया जाता है। सरथा के किसानों ने बताया कि यहां अधिकतर घरों में शौचालय हैं और वे उसका उपयोग करते हैं। मवेशियों की संख्या घटने एवं संयुक्त परिवार टूटने की वजह से कृषि प्रभावित होने की बात भी कही। विशेषज्ञों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में कृषि एवं पशुपालन के तौर-तरीक़े किसानों को बताए। गांव भ्रमण के बाद सभी विशेषज्ञ धान की सीधी बोआई देखने खेतों में पहुंचे। वहां करीब एक घंटे तक ठहरे और उपज दर, खाद व कीटनाशक के उपयोग पर चर्चा की। बाढ़, सूखा और भूमिगत जलस्तर की भी जानकारी ली। टीम का नेतृत्व प्रभु पिंगाली कर रहे थे। इनके साथ पासकर मित्रा, हैरंड वेन्स, लोगन हिली-टूक, पायल नेठ, थरथ चन्द्रान, नवीन श्रीधर, मिलोरेड पल्लवसेल एवं मेत्थु आब्रह्म आदि थे। कृषि विज्ञान केंद्र हरनौत के विज्ञानी डा. उमेश नारायण उमेश एवं विभा कुमारी ने स्थानीय किसानों से संवाद में उनका सहयोग किया। .............. सर, नहीं चाहता कि बच्चे किसान बनें ................... कार्नेल विश्वविद्यालय के प्रतिनिधियों ने किसानों से पूछा कि कितने लोग चाहते हैं कि आपके बच्चे भी खेती करें? जवाब में किसी ने हामी नहीं भरी। कारण बताया गया कि उपज दर बढ़ने के बावजूद खेती उतनी लाभकारी नहीं साबित हो रही, जिससे इसे करियर बनाया जाए। मौसम भी साथ नहीं दे रहा है। एकल परिवार बढ़े हैं, ऐसे में खेती करना बड़ी चुनौती है। कामगार नहीं मिलते हैं। विज्ञानियों ने पूछा, तब क्या खेत बेच देंगे। इस पर किसानों ने बताया कि जिनके पास श्रम शक्ति है, उनके हाथों खेत पट्टे पर लगा देंगे। अधिकांश भू स्वामी ऐसा कर भी रहे हैं।

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