कभी बैलगाड़ी थी प्रमुख सवारी आज दौड़ रही सफारी



जागरण संवाददाता, पूर्णिया: कभी पूर्ण अरण्य और कालापानी के नाम से जाना जाने वाला पूर्णिया आज सिक्सलेन पर सवार विकास पथ पर सरपट दौड़ लगा रहा है। बैलगाड़ी से हिचकोले खाने वाली सड़कों पर अब फरार्ट भरती लग्जरी वाहन सफारी दौड़ रही है। जल्द ही यहां आने वाले दिनों में हवाई सफर की सेवा भी शुरू होगी और यहां के लोग इस सेवा का लाभ भी पा सकेंगे। धमदाहा प्रखंड निवासी 85 वर्षीय छुकुंदी दास कहते हैं कि जब हमें आजादी मिली थी उस समय तक यह इलाका काफी पिछड़ा था। न पीने को शुद्ध पानी मौजूद था न ही यातायात की सुगम सुविधा थी। यहां के पानी में इतना अधिक आयरन था कि लोगों का स्वास्थ्य सही नहीं रह पाता था। नदियों से घिरे इस इलाके में बरसात का माह काफी दुरूह होता था। गावों में पगडंडियां थीं जिस पर साल में छह माह पानी जमा रहता था। जिला मुख्यालय में एकमात्र अस्पताल था लेकिन वहां जाना बड़ा मुश्किल काम था। यातायात के साधन का घोर अभाव था। जिले से होकर गंगा-दार्जिलिग रोड निकलती थी जिस पर तभी बैलगाड़ी ही प्रमुख सवारी थी। रेल पकड़ने के लिए लोगों को भागलपुर जाना पड़ता था। छोटी रेल लाइन थी जिस पर एक-दो पैसेंजर ट्रेन ही चलती थी। लेकिन आजादी के बाद उत्तरोत्तर विकास को गति मिली। जंगलों की जगह कंक्रीट की बड़ी-बड़ी मकानें खड़ी हो गयी तो कालापानी का दाग भी मशीनों ने धो डाला है। यहां का पानी आज बोतलों में बंद होकर दूसरे राज्य के लोगों की प्यास बुझा रहा है। जंगलों से शुरू हुआ पूर्णिया का सफर आज स्मार्ट सिटी की दहलीज पर दस्तक दे रहा है।
अब नए ड्रेस कोड में दिखेंगी कस्तूरबा स्कूल की छात्राएं यह भी पढ़ें
शिक्षाविद प्रो सुमन कहते हैं कि सामरिक, आध्यात्मिक, भौगोलिक और प्राकृतिक ²ष्टिकोण से इस क्षेत्र का शुरू से ही महत्व रहा है। पूर्व में पूर्णिया का क्षेत्र काफी विस्तृत रहा है। एक शोध के अनुसार जिला एक समय 370 किमी के परिक्षेत्र में फैला था तथा दर्जिलिग न्यायिक परिक्षेत्र में आता था। बाद में शासन की सहुलियत के लिए अंग्रेजों से लेकर आजाद भारत के शासकों ने इसका खंडित किया। बावजूद आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटा होने के कारण इसका सामरिक महत्व बरकरार है। पूर्ण अरण्य आज शिक्षा और मेडिकल का हब भी बन चुका है। कई बड़े-बड़े शिक्षा संस्थान आज यहां सीमांचल के साथ साथ दूसरे राज्यों के छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रही है। उच्च शिक्षा के लिए कई इंजीनियरिग कॉलेज यहां हैं तो मेडिकल कॉलेज का निर्माण भी प्रगति पर है। वहीं स्वास्थ्य सेवा में भी पूर्णिया काफी आगे है। नेपाल से लेकर बंगाल तक के लोग यहां मेडिकल सुविधा लेने आते हैं। बड़े -बड़े नर्सिंग होम में यहां 600 से अधिक चिकित्सक अपनी सेवा दे रहे हैं।बुजुर्ग महादेव झा बताते हैं कि एक समय था कि कृषि के अलावा यहां रोजगार का कोई अन्य साधन नहीं था। लेकिन आज उद्योग-धंधों का भी विस्तार हो रहा है। एथेनाल प्लांट, गैस बाटलिग प्लांट, वाटर प्लांट, मक्का आधारित उद्योग, जूट उद्योग सहित कई लघु उद्योग यहां हजारों लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं। बैलगाड़ी से शुरू हुआ सफर आज हवाई सफर को तैयार है।

अन्य समाचार