भाई-बहन के अटूट रिश्ते का त्योहार रक्षाबंधन आज, हर तरफ उत्साह

सीतामढ़ी। भाई-बहन के सबसे पवित्र रिश्ते का प्रतिक रक्षाबंधन का त्योहार शुक्रवार को है। इस दिन का भाई-बहन दोनों को बेसब्री से इंतजार रहता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बंधन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं। रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी महंगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन के दिन बहनें भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए प्रार्थना करती हैं। उधर, राखी को लेकर बाजार गुलजार रहा। राखी और मिठाई की दुकानों पर रात तक खरीदारों की भीड़ रही। बहनों को गिफ्ट देने के लिए कपड़े व अन्य सामान बाजार में खूब बिके। आभूषण की दुकानों में भी डिजाइनदार चांदी की राखियां बिकीं। उसकी भी खूब बिक्री हुई। मिठाई, राखी और कपड़ा बाजार में दिनभर में 10 लाख रुपये से अधिक की बिक्री हुई। पिछले साल कोरोना का प्रकोप था। उसकी तुलना में इस बार बिक्री अप्रत्याशित रही। चांदी की राखी की बिक्री 50 हजार रुपये से ज्यादा की रही। रक्षाबंधन के त्योहार को लेकर सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए गए हैं। प्रात: साढ़े पांच से साढ़े सात बजे तक रक्षाबंधन का मुहूर्त सर्वोत्तम सीतामढ़ी। डुमरा के आचार्य पंडित मुकेश मिश्र ने कहा है कि शुक्रवार को सूर्योदय प्रात : साढ़े पांच बजे हो रहा है और अगले दो घंटे यानी साढ़े सात बजे तक रक्षाबंधन का मुहूर्त सर्वोत्तम है। स्पष्ट रूप से शास्त्र में रक्षा बंधन का ²ष्टांत आता है-'इयं पूर्णिमा उदयव्यापिनी ग्राह्या'। इसका भाव यह हुआ कि रक्षाबंधन वाली जो पूर्णिमा तिथि है, उसकी मान्यता उसी दिन होगी जिस दिन सूर्योदय के समय में पूर्णिमा तिथि होगी। अर्थात सूर्योदय में पूर्णिमा तिथि का योग होगा। 11 तारीख गुरुवार को दिन में पौने दस बजे से ही पूर्णिमा तिथि थी, लेकिन उदय नहीं था। सूर्योदय चतुर्दशी तिथि को होता है। अत: इस दिन पूर्णिमा तिथि की मान्यता नहीं थी। शास्त्र सम्मत रक्षाबंधन 12 अगस्त शुक्रवार को मनाना उचित है। 12 को पूर्णिमा तिथि सुबह साढ़े सात बजे तक ही है। कितु सूर्योदय का समय साढ़े पांच है। अत: शास्त्रीय नियमानुसार शुक्रवार को भाई-बहन का राखी का त्योहार मनाना श्रेयष्कर होगा। यह सर्वोत्तम हुआ। चूंकि पूर्णिमा उदय व्यापनी कही गई है यानी इयं पूर्णिमा उदयव्यापिनी ग्राह्या इस नियमानुसार, दिन भर उस पूर्णिमा की मान्यता होगी। दूसरी ओर, श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही सभी भाषाओं की जननी देववाणी संस्कृत भाषा का उछ्वव एवं अवतरण हुआ था। हमारे दैनिक जीवन में संस्कृत भाषा का उपयोग अनुपम एवं अद्वितीय है। देवी-देवता से लेकर हमारे पित्र गण संस्कृत के शब्दों, श्लोकों एवं मंत्रों को सुनकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं एवं अपने भक्त तथा संतति को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। वैसे तो ईश्वर सर्वज्ञ कहे जाते हैं, परंतु उनके समक्ष संस्कृत में मंत्र एवं श्लोक सुनाने से भक्त की मनोभिलषित मनोकामना पूरी होती है।


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