81 वर्षों से एकाढ़ के हर घर में सज रहा है कान्हा का पालना

संसू, नवहट्टा (सहरसा) : चंद्रायण पंचायत के एकाढ़ गांव में पिछले 81 वर्षों से जन्माष्टमी के अवसर पर गांव के हर घर में कान्हा का पालना सजता है। इसके लिए खरीदारी जोरों पर है। वर्ष 1942 से ही यह परंपरा चली आ रही है। इसके विस्तार में आने के बाद गांव में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर मेले का आयोजन होने लगा है। नारदी भजन एवं सरपौसा यहां की विशेषता है।

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कैसे शुरू हुई परंपरा
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ग्रामीणों का कहना है कि घर घर में कान्हा के पालना सजाने की परंपरा बहुत ही पुरानी है। लोगों ने बताया कि एकबार गांव के कुछ लोग कोसी नदी के कछार में शिकार खेलने के लिए जंगल गए। उसी दौरान पीछे-पीछे गांव का एक बालक भी जंगल की ओर चला गया। जब तक बालक पर गांव के लोगों की नजर पड़ी तब तक वह हिसक जानवरों से घिर गया था। लोगों ने बालक की सुरक्षा के लिए भगवान कृष्ण का स्मरण किया। बालक सकुशल गांव लौट आया। उसी दिन से कान्हा के पालना सजाने की परंपरा चली आ रही है।

ग्रामीणों का कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण की महिमा है कि 1984 में तटबंध टूटने पर चारों और कोसी का पानी लबालब था, लेकिन गांव के लोग पूरी तरह सुरक्षित रहे।
---- जन्माष्टमी आज, तैयारी पूरी
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जन्माष्टमी को लेकर तैयारी अंतिम चरण में है। श्रीकृष्ण समेत अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति को अंतिम रूप दिया जा रहा है। रंग-बिरंगे बल्ब एवं दूधिया रोशनी से परिसर जगमगा उठा है। चंद्रायण पंचायत के एकाढ़, मुरादपुर एवं नगर पंचायत नवहट्टा व गोड़पारा में पूजा एवं मेला की तैयारी में लोग जुटे हैं। प्रत्येक साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में रात्रि 12:00 बजे श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाए जाने की परंपरा रही है। पोखरभिडा के पंडित बमबम झा ने बताया कि अष्टमी तिथि गुरुवार को 12 :14 में आ रही है जो अगले दिन शुक्रवार को 1:56 बजे तक रहेगी। इस अवसर पर भक्तजन भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं ।
--- बाजार में बढ़ी खरीदारी
---- बाजार में अपने अपने तरीके से लोगों ने जन्माष्टमी को लेकर खरीदारी शुरू कर दिया है । कान्हा के ऋंगार के लिए एक से बढ़कर एक पोशाक, मोर पंख, मुकुट आदि की खरीदारी की जा रही है । लकड़ी पीतल के झूले मिल रहा ह । नवहट्टा के विक्रेता सुमन सुधाकर बताते हैं कि मिट्टी के लड्डू गोपाल 15 से लेकर 50 रुपये तक , पीतल के ढाई सौ से हजार रुपए तक, मुकुट 15 से दो सौ रुपये तक, बांसुरी पांच से 50 रुपये तक, मोर पंख पांच से 20 रुपये तक पोशाक 25 से डेढ़ सौ रुपये तक स्थानीय बाजार में उपलब्ध है ।

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