कोसी के इलाके में नियंत्रित हुई मलेरिया, अनियंत्रित हुए मच्छर

जागरण संवाददाता, सुपौल। 1731 ई. के आसपास जब कोसी पूर्णिया होकर बहती थी तो उस समय कहा जाता था कि जहर खाउ न माहुर खाउ, मरै के हुए त पुरैनिया जाउ। यह इसलिए कहा जाता था कि कोसी की जलवायु अस्वास्थ्यकर थी। जलजमाव वाले इलाके में मच्छर पलते-बढ़ते थे और मलेरिया को जन्म देते थे। कोसी नदी धारा परिवर्तन के लिए विख्यात रही है। धारा परिवर्तन का ही नतीजा है कि 1731 में फारबिसगंज और पूर्णिया के पास बहने वाली कोसी धीरे-धीरे पश्चिम खिसकते हुए 1892 में मुरलीगंज के पास, 1922 में मधेपुरा के पास, 1936 में सहरसा और दरभंगा-मधुबनी जिला के समीप पहुंच गई।

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इसके बाद इसे दो तटबंधों के बीच बांध दिया गया। इससे बाढ़ पर तो नियंत्रण पा लिया गया लेकिन जलजमाव वाले इलाके में मच्छरों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका। खुशी की बात यह कि फिलहाल मलेरिया नियंत्रित है। मच्छर से हर कोई परेशान रहता है। इससे निजात पाने के लिए लोग अपने घरों में एक से एक उपाय करते हैं, बावजूद इससे छुटकारा नहीं मिल पाता।
जानकारी अनुसार एक परिवार एक महीने में मच्छर भगाने के नाम पर डेढ़ से दो सौ रुपये खर्च करते हैं। गर्मी मौसम में तापमान बढने के साथ ही अचानक मच्छरों की तादाद तेजी से बढ़ने लगती है, जिसके कारण लोगों के सेहत पर खतरा मंडराने लगता है। मच्छरों के काटने से मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जैसे बीमारी होती है। वैसे मच्छरों के काटने से ज्यादातर मलेरिया के होने की संभावना होती है। यह बीमारी मादा एनाफिलिस मच्छर के काटने से होती है। कोसी क्षेत्र में मलेरिया के मरीज अधिक देखने को मिलती है। हालांकि, मौजूदा समय में सुपौल जिले में मलेरिया के कुल 09 मरीज ही पाए गए हैं। यहां मलेरिया मरीजों की कम संख्या का मूल कारण है कि विभाग द्वारा समय-समय पर दवा का छिड़काव किया जाता है। मच्छरों के भगाने के नाम पर बाजार में बत्तियों व उपकरणों की भरमार है।
हालांकि, लोगों का मानना है कि ऐसे उपकरण व बत्तियों के इस्तेमाल से मच्छरों के आतंक से पूर्ण छुटकारा तो नहीं मिल पाता, उलटे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है। बावजूद इसके मच्छरों के भगाने के नाम पर एक परिवार डेढ़ से दो सौ रुपये प्रतिमाह खर्च कर देते हैं। एक अनुमान के मुताबिक माह में दस लाख से ऊपर का व्यवसाय बाजार में होता है। इधर कई लोग मच्छरों से निजात के लिए सबसे अच्छा तरीका मच्छरदानी को ही मानते हैं।

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