सुखद: डाल्फिन ने बागमती में बनाया रहवास

अमित झा, जागरण संवाददाता, खगड़िया : अमूनन डाल्फिन गंगा में दिखती, मिलती है। पिछले कुछ वर्षों से खगड़िया में बागमती के किनारे डाल्फिन देखी जा रही है। यह सुखद संदेश है। वन विभाग के पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है। बागमती नदी के अग्रहण घाट, चौथम घाट, नवादा घाट और मालपा घाट के पास डाल्फिन देखी जा रही है। समय-समय पर मछुआरों के जाल में यह फंस जाती है।


बागमती के किनारे बढ़ाई गई चौकसी, चलाया जा रहा है जागरूकता अभियान


उप वन परिषद पदाधिकारी, चौथम-बेलदौर, राजेंद्र कुमार रंजन ने बताया कि विभाग के वरीय अधिकारी के आदेश पर उक्त घाटों पर निगरानी रखी जा रही है। मछुआरों से समन्वय स्थापित किया जा रहा है। मछुआरों को उन तरीकों के बारे में बताया जा रहा है, जिससे जाल में फंसने के बाद उसे कोई नुकसान ना हो। बीते गुरुवार को ही चौथम घाट पर एक डाल्फिन जाल में फंस गई थी। उसे सकुशल बागमती में छोड़ दिया गया। सूचना पर बन विभाग हरकत में आई। मालपा घाट पहुंचकर बीते शुक्रवार को मछुआरों को जागरूक किया। नदी के किनारे बोर्ड लगाए गए हैं। जिस पर लिखा हुआ है- 'सावधान, डाल्फिन संभावित क्षेत्र, मछुआरों को निर्देश दिया जाता है कि इस क्षेत्र में मछली पकड़ने वाले जाल आदि का प्रयोग न करें।' वन विभाग के वरीय अधिकारी कहते हैं- गंगा में पानी बढ़ने पर डाल्फिन उल्टी दिशा में इधर आई हो, ऐसी संभावना है। बावजूद, जनवरी में भी यहां डाल्फिन देखी गई है। उस समय नदियों में पानी नहीं बढ़ता है। ऐसे में इस बात की संभावना अधिक है कि डाल्फिन ने यहां रहवास बना लिया है। पर्यावरण विमर्श के लेखक डा. अनिल ठाकुर कहते हैं- यह केवल गंगा में ही नहीं बागमती में भी पाई जाती है, यह सच है। इसको संरक्षित करने का प्रयास सरकारी स्तर पर किया जाए। सोस अर्थात डाल्फिन जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
डाल्फिन संरक्षित प्राणी है। इसे लेकर विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। अगर ज्यादा संख्या में मिलेगी, तो अलग से भी इसको लेकर प्रयास होगा।
रविद्र कुमार रवि, डीएफओ, खगड़िया

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