मुरहो में राजकीय समारोह के रूप में मनाई जाएगी बीपी मंडल की जयंती

संवाद सूत्र, मधेपुरा : आजादी के बाद मधेपुरा से विधायक, सांसद, मंत्री व मुख्यमंत्री रहे बीपी मंडल समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों के दुख-दर्द से रू-ब-रू होते रहे। वे सुलझे राजनेता के साथ ईमानदार व निर्भीक इंसान थे। 25 अगस्त को बीपी मंडल की 104वीं जयंती समारोह का आयोजन उनके पैतृक गांव मुरहो में किया जाएगा। राजकीय समारोह के रूप में मनाए जाने वाले इस जयंती की तैयारी प्रशासन ने पूरी कर ली है, लेकिन कोरोना के प्रभाव को देखते हुए प्रशासन ने लोगों से समारोह स्थल पर भीड़ नहीं लगाने का अनुरोध किया है। समारोह का आयोजन सुबह 10 बजे से बीपी मंडल के स्मारक स्थल, मुरहो पर किया जाएगा। इसमें जिले के वरीय पदाधिकारी समेत जन प्रतिनिधि मौजूद रहेंगे। 25 अगस्त 1918 को काशी में हुआ था उनका जन्म जिले के मुरहो निवासी पिता रासबिहारी लाल मंडल व माता सीतावती देवी के संतान के रूप में उनका जन्म 25 अगस्त 1918 को उत्तर प्रदेश के काशी में हुआ था। वे ब्रिटिश भारत में अवैतनिक दंडाधिकारी रहे। स्वतंत्र भारत में तीन बार विधायक, दो बार संसद सदस्य, एक बार बिहार विधान परिषद के सदस्य व एक बार सीएम रहे। वे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष तथा बिहार राज्य नागरिक परिषद के ताउम्र उपाध्यक्ष भी रहे। उन्होंने युगोस्लाविया, रोमानिया, बुल्गारिया तथा चकोस्लोवाकिया की विदेश यात्रा भी की थी। अंत में 13 अप्रैल 1982 को पटना में उन्होंने अंतिम सांस ली। पैतृक गांव मुरहो में उनका शरीर पंच तत्व में विलीन हुआ था। यही कारण है कि हर साल 25 अगस्त को बीपी मंडल जयंती राजकीय समारोह के रूप में मुरहो स्थित उनके स्मारक स्थल पर जिला प्रशासन के सहयोग से मनाया जाता है।


पिछड़ों के नायक कहलाते थे मंडल बिहार के पूर्व सीएम बिदेश्वरी प्रसाद मंडल को अन्य पिछड़े वर्गों का नायक कहा जाता है। उन्होंने भारत का सामाजिक तानाबाना बदल डाला था। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार ने 20 दिसंबर 1978 को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल की अगुवाई में छह सदस्यों के नए आयोग की घोषणा की थी। जिसे मंडल आयोग के नाम से जाना जाता है। आयोग ने पिछले वर्ग की पहचान के लिए जातियों को पैमाना बनाया। इसी आधार पर आरक्षण की सिफारिश की। बीपी मंडल ने देश भर में पिछड़ों के सामाजिक और शैक्षणिक हालात का जायजा लेने के लिए घूम-घूम कर मंडल आयोग की रिपोर्ट तैयार किया था। मंडल आयोग ने सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक कसौटियों पर तमाम जातियों को परखा और बताया कि देश में कुल 3743 पिछड़ी जातियां हैं। उन्होंने सिफारिश की थी कि जमींदारी प्रथा को खत्म करने के लिए भूमि सुधार कानून लागू किया जाए क्योंकि पिछड़े वर्गों का सबसे बड़ा दुश्मन जमींदारी प्रथा थी। 1980 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी तब मोरारजी देसाई की सरकार गिर चुकी थी। दस साल बाद मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून बनाया। मंडल आयोग की सिफारिशों को जिस समय लागू किया गया था उस वक्त देश भर में विरोध प्रदर्शन होने लगे। धीरे-धीरे आंदोलन शांत हुआ। रिपोर्ट की सिफारिशों के लागू होने के बाद बीपी मंडल इतिहास में अमर हो गए। मंडल रिपोर्ट के लागू होने के बाद तंत्र में अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों की भागीदारी बढ़ी है, जिससे लोकतंत्र समृद्ध हो रहा है।

अन्य समाचार