पीएचडी शोधार्थी से विभागाध्यक्ष ने मांगी मछली, आडियो वायरल

पीएचडी शोधार्थी से विभागाध्यक्ष ने मांगी मछली, आडियो वायरल

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की पीएचडी शाखा इन दिनों काफी चर्चा में है। नियमों की अनदेखी और अनियमितता के कारण पिछले दिनों कार्रवाई भी हो चुकी है। इसके बाद भी संबंधित अधिकारी मानने को तैयार नहीं हैं। ताजा मामला विश्वविद्यालय के एक स्नातकोत्तर विभाग का सामने आया है। यहां पीएचडी शोध प्रबंध जमा करने की प्रक्रिया के दौरान मछली मांगने का आडियो वायरल हो रहा है। इस आडियो में शोध प्रबंध जमा एवं अंतिम मौखिकी के दिन नाश्ते के नाम पर हजारों खर्च कराने की बात भी सामने आ रही है। वायरल आडियो में एक स्नातकोत्तर विभाग के विभागाध्यक्ष शोधार्थी से अच्छी किस्म की मछली मांग रहे रहे हैं। बातचीत में विभागाध्यक्ष शोधार्थी से कहते हैं, हेलो... कहां हो, अब तक मछली घर नहीं पहुंची। जवाब में शोधार्थी ने कहा सर दोनार में हूं, आपके कहे अनुसार अच्छी किस्म की दो किलो मछली ले लिया हूं। दस मिनट में आपके घर मछली लेकर आ रहा हूं। इसके बाद फिर विभागाध्यक्ष कहते हैं, यार जल्दी आओ, रात हो रही है। ज्यादा लेट करोगे तो दिक्कत हो जाएगी। शोधार्थी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि विभागाध्यक्ष द्वारा सिर्फ मछली ही नहीं, बल्कि शोध प्रबंध जमा एवं अंतिम मैखिकी के दिन भी शोधार्थियों से नाश्ता एवं खाना के नाम पर भी दबाव देकर 15 से 20 हजार रुपये खर्च कराया जाता है। बाह्य विषय विशेषज्ञ के आने-जाने का खर्च भी देते शोधार्थी एक विषय के शोधार्थी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि विभिन्न विषयों से पीएचडी कर रहे शोधार्थियों को अंतिम मौखिकी के दिन बाह्य विषय विशेषज्ञों का यात्रा समेत अन्य भत्ता का भी भुगतान करना होता है, जबकि नियम के तहत सभी तरह का भुगतान विवि प्रशासन के द्वारा किया जाना है। शोध प्रबंध जमा करने के समय ही शोधार्थियों से शोध प्रबंध मूल्यांकन समेत अन्य सभी शुल्क के रूप में छह हजार रुपये जमा लिए जाते हैं। शोधार्थियों से अंतिम मौखिकी के दिन फाइल आगे बढ़ाने के नाम पर भी विभागाध्यक्ष द्वारा कर्मचारियों को पांच सौ से एक हजार रुपये देने का दबाव बनाया जाता है। नहीं देने पर फाइल कई दिनों तक विभाग में ही पड़ी रह जाती है। डेवलपमेंट के नाम पर भी हजारों वसूली विवि के कुछ स्नातकोत्तर विभाग में पीएचडी कर रहे शोधार्थियों से विभागीय डेवलपमेंट के नाम पर भी वसूली का मामला सामने आया है। सूत्रों की मानें तो विवि के कुछ विभाग में विभागाध्यक्षों के द्वारा डेवलपमेंट के नाम पर अवैध रूप से पांच से दस हजार रुपये तक मांगे जाते हैं।

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