बायोफ्लाक विधि से मछली पालन पर 75 प्रतिशत तक अनुदान

बायोफ्लाक विधि से मछली पालन पर 75 प्रतिशत तक अनुदान

बेतिया। अब मछलीपालन को लेकर ज्यादा भूमि की जरूरत नहीं पड़ेगी। कम जगह यानि घर के बाहर खाली पडे भूमि या छत पर बायोफ्लाक विधि से आसानी से मछली पालन कर 10 लाख तक की कमाई की जा सकती है। बायोफ्लाक विधि यानि टैंक में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार अनुदान दे रही है। सामान्य वर्ग को 50 प्रतिशत, इबीसी व एससी-एसटी को 75 प्रतिशत अनुदान राशि दी जाती है। जिला मत्स्य पदाधिकारी गणेश राम ने बताया कि बायोफ्लाक एक यूनिट यानि पांच टैंक बनाने में आठ से साढे आठ लाख की लागत आती है। लागत के 50 से 75 तक अनुदान राशि दी जाती है। काफी कम जगह में बिना तालाब के, सिर्फ टैंक की मदद से मछली पालन की जा सकती है। टंकी में मछली पालन के लिए बायोफ्लाक विधि का इस्तेमाल किया है। इन टैंकों में मछली पालन करने से आर्थिक रूप से काफी मुनाफा है। इन टैंकों में कैट प्रजाति की मछलियां मांगूर, पंगेशियस, सिंगी आदि का उत्पादन किया जा है। इतना ही नहीं, इन टैंकों में साल में दो बार मछलियों का उत्पादन किया जाता है। मछली का बढ़ेगा उत्पादन, मिलेगा रोजगार जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि बायोफ्लाक विधि से मछली का उत्पादन बढेगा। इससे पांच से 10 लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मिलेगा। इतना ही जिले में बाहर से आने वाली मछली की निर्भरता कम होगी। जिले में प्रतिवर्ष मछली की मांग करीब 25 हजार मिट्रिक टन है। इसमें जिले में मछली उत्पादन का हिस्सा 18 हजार मिट्रिक टन है। ऐसे में 7 हजार मिट्रिक टन बाहर के राज्यों से मछली मंगानी पड़ती है। जिसमें कामन कर्प, ग्रास कार्प, पंगेसिएस आदि मछलियां बाहर से मंगाई जाती है। 28 अगस्त तक आनलाइन कर सकते हैं आवेदन जिला मत्स्य पदाधिकारी गणेश राम ने बताया कि जिले में पिछले वर्ष 15 लोगों को बायोफ्लॉक यूनिट लगाने के लिए अनुदान दी गई है। इस वर्ष अब तक विभाग की ओर से आवंटन नहीं मिला है। हालांकि बायोफ्लाक यूनिट लगाने के लिए आवेदन लिया जा रहा है। यूनिट लगाने वाले अनुदान का लाभ लेने के लिए 28 अगस्त तक आवेदन कर सकते हैं। निर्धारित तिथि के बाद आनलाइन आवेदन नहीं लिया जायेगा। ----------------- इनसेट कोरोना काल व बाढ़ ने मछली उत्पादन किया प्रभावित मझौलिया प्रखंड के बघंबरपुर गांव निवासी दो भाई सगे देवानंद सिंह व विवेक सिंह ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर वर्ष 2019 में बायोफ्लाक विधि से मछली पालन शुरु की थी। जिसे देखने 3 दिसंबर 2019 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आए थे। इसे जल-जीवन-हरियाली से जोड़ने की बात कही थी। साथ पूरे बिहार में इस विधि से मछलीपालन पर अनुदान देने की घोषणा भी किया था। दोनों भाईयों के प्रयास को तत्कालीन डीएम डॉ. निलेश रामचंद्र देवरे सराहा भी था। देवानंद कहते हैं मछली उत्पादन पर सबसे असर कोरोना काल का पडा। बची-खुची आस को वर्ष 2021 में आई बाढ़ ने मिटा दिया। उत्पादन ठप हो गया। घाटा भी लगा। इसलिए टैंक में मछलीपालन छोड़कर अब प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी दोनों भाई कर रहे हैं।

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