खेल मैदान और संसाधन की कमी से प्रतिभाएं हो रही कुंठित

खेल मैदान और संसाधन की कमी से प्रतिभाएं हो रही कुंठित

बेतिया। मैदान के बगैर खेल और खिलाड़ियों को सफलता नहीं मिल सकती। इसी से जिले के खिलाड़ियों को जूझना पड़ रहा है। प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर हाकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का जन्म उत्सव के रूप मनाया जाता रहा है। लेकिन दुर्भाग्य है कि आज भी हॉकी खिलाड़ी एक खेल मैदान व अदद किट के अभाव में खेल से वंचित रह जाते हैं। अभी भी हॉकी उदासीनता की शिकार हैं। यहां न तो हॉकी खेलने के लिए कोई स्टेडियम है और न ही खेल का संसाधन। वही हॉकी का नाम सुनते ही जेहन में सिर्फ ध्यानचंद का ही नाम उभर जाता है। दुनिया में कोई खिलाड़ी अपने खेल में इतना लोकप्रिय नहीं हुआ, जितना ध्यानचंद हॉकी में हुए थे। लेकिन आज जिला मुख्यालय सहित आसपास के ग्रामीण इलाकों मे खेल मैदान नहीं रहने के कारण खेल प्रतिभाएं कुंठित हो रही है। नवोदित खिलाड़ी खेल से लगातार विमुख होते जा रहे हैं। पहले के खिलाड़ी क्रिकेट, हॉकी, फुटबाल, वालीबॉल सहित कई खेल खेला करते थे। परंतु समय के साथ खेल का मैदान सिमटते चला गया। जिसके कारण खेल प्रतिभा निखरने से पहले मुरझा गई। क्रिकेट और फुटबॉल में रमना के खिलाड़ियों का दबदबा हुआ करता था। दोनों खेल में यहां के कई खिलाड़ी जिलास्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके हैं। लेकिन प्रशासन, खेल संघ तथा आधारभूत संरचना के अभाव में यहां की प्रतिभा रमना से बाहर नही निकल पाई। जिले के खिलाड़ियों का कहना है कि खेल प्रतिभा की कमी नहीं है। परंतु खेल संसाधन व मैदान का अभाव है। रमना मैदान और महाराजा स्टेडियम का विकास जरूरी खिलाड़ी और खेल प्रदर्शन व खेल गौरव बढ़ाने के लिए रमना मैदान और महाराजा स्टेडियम का विकास जरूरी है। उक्त बातें कॉम्पिटेटिव जॉन के निदेशक पवन कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि फिलवक्त रमना और महाराजा स्टेडियम का खस्ताहाल है। खेल और खिलाड़ियों की भविष्य के लिए इसका जीर्णोद्धार करना बेहद जरूरी है। इसके लिए जनप्रतिनिधियों को खुलकर सामने आना चाहिए और प्राथमिकता के आधार पर रमना और महाराजा स्टेडियम का विकास करना चाहिए। खिलाड़ियों की जुबानी खिलाड़ी किसी तरह प्रैक्टिस कर रहे हैं। कोच न होने से बहुत समस्या है। ट्रैक भी प्रैक्टिस लायक नहीं है।खिलाड़ियों के लिए भी उपकरणों का घोर अभाव है। यहां खिलाड़ियों को जो सुविधा मिलनी चाहिए वह ना के बराबर है। प्रमोद कुमार खो-खो नेशनल प्लेयर ---------------- कोच न होना बड़ी समस्या है। साथ ही मैदान पर भी अधिकारियों का ध्यान नहीं है। खिलाड़ी अपने मन से प्रैक्टिस करते है। मगर, बिना कोच एथलेटिक्स की प्रैक्टिस संभव नहीं होती। ट्रैक पर भी गड्ढे हैं। रतन बनिक फुटबॉल नेशनल प्लेयर ----------------- गांव से लेकर शहरी क्षेत्र में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। संसाधन बढ़ाने के लिए सरकार को विशेष पहल करनी चाहिए। विशेषकर नगर के बड़ा रमना के मैदान पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। सचिन कुमार क्रिकेट खिलाड़ी ---------------------
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