दूसरों को सुखी रखने की इच्छा ही है श्री कृष्ण लीला

दूसरों को सुखी रखने की इच्छा ही है श्री कृष्ण लीला

सीतामढ़ी। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रखंड के कुआरी मदन राधा कृष्ण मंदिर प्रांगण में श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन रामजन्म भूमि अयोध्या से आए कथावाचक आचार्य हरि मंगल पराशर जी महाराज ने संगीतमय कथा वाचन कर भगवान की बाल लीलाओं के चरित्र का वर्णन किया। कहा कि लीला और क्रिया में अंतर होती है। अभिमान तथा सुखी रहने की इच्छा प्रक्रिया कहलाती है। इसे ना तो कर्तव्य का अभिमान है और ना ही सुखी रहने की इच्छा, बल्कि दूसरों को सुखी रखने की इच्छा को लीला कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने यही लीला की, जिससे समस्त गोकुलवासी सुखी और संपन्न थे। उन्होंने कहा कि माखन चोरी करने का आशय मन की चोरी से है। कन्हैया ने भक्तों के मन की चोरी की। उन्होंने सभी बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए उपस्थित श्रोताओं को वात्सल्य प्रेम में सराबोर कर दिया। आचार्य ने बताया कि कैसे लीलाधर कृष्ण ने माता यशोदा के द्वारा मुख खोलवाने पर अपने मुख में चर- अचर, संपूर्ण जगत विद्यमान, आकाश, दिशाएं, पहाड़, द्वीप, समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, वायु वैद्युत, अग्नि, चंद्रमा और तारों के साथ संपूर्ण ज्योतिर्मंडल, जल, तेज, प्रकृति, महतत्त्व, अहंकार, देवगन, इंद्रियां, मन, बुद्धि, त्रिगुण जीव, काल, कर्म, प्रारब्ध आदि तत्व की मूर्त दिखा अचंभित कर दिया था। कथा के अंत में आचार्य श्री ने कहा कि धर्म से ही विज्ञान की उत्पत्ति हुई है। आज जो विज्ञान ढूंढ रहा है वह हमारे ग्रंथों, वेदों में पहले से ही लिखा जा चुका है। यह भारत देश की विडंबना है कि आज हिंदू समाज के लोग अपने धर्म ग्रंथों को न पढ़ते हैं और ना ही उसके विषय में किसी तरह की जानकारी की लालसा रखते हैं। अक्सर देखा जाता है कि वृद्धावस्था में लोग भक्ति के पथ पर निकल पड़ते हैं। वृद्धावस्था में शरीर साथ ही नहीं देता तो भक्ति क्या कर पाएंगे, भक्ति का सही समय बचपन से ही प्रारंभ होता है। और भक्ति से ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। कार्यक्रम का आयोजन बाबा प्रमोद दास जी महाराज द्वारा किया जा रहा है। आयोजन में विक्रम सिंह, मनीष परमार, नीरज झा, अनीश कुमार, गौरव सिंह, राजकुमार सिंह सहित अन्य ग्रामीण सहयोग कर रहे हैं।

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