कीचड़ से सोना निकालने की तरकीब, महीने में 50 हजार से एक लाख रुपए कमा लेते हैं मध्‍य प्रदेश के ये लोग



बरबीघा (शेखपुरा), संवाद सूत्र। सोना निकालने के लिए इसकी खदान ढूंढते हैं, और खरीदने के लिए दुकान। कहते हैं कि झारखंड में बहने वाली स्‍वर्णरेखा नदी में भी सोने के कण मिलते हैं। लेकिन, क्‍या आपको यह अंदाजा है कुछ लोग गंदी नाली से सोना निकाल लेते हैं। वह भी जरा सा नहीं, बल्कि 10 से 20 ग्राम तक। इसकी कीमत 50 हजार से एक लाख रुपए के बीच होती है। 
शेखपुरा में एक समुदाय आजकल इसी काम के लिए विशेष रूप से आया है। नाली इस विशेष समुदाय के लोगों के जीवन-यापन का मुख्य साधन भी है। मध्यप्रदेश के मूल निवासी विहके प्रजाति जिन्हें सोनाझारी के नाम से भी जाना जाता है, देश के अलग-अलग इलाके में जाकर नालियों से सोना निकालकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं।

सोनार पट्टी इलाके में नालियों से सोना निकाल रही संगीता विहके ने बताया कि वे मूलतः मध्य प्रदेश के रहने वाली हैं पर झारखंड के राजधनवार में अस्थायी तौर पर रह रही हैं। उनका पूरा कुनबा देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर नगर-नगर घूम कर नालियों से सोना निकालने का काम करते हैं। आठ से दस लोगों का समूह अभी शेखपुरा में किराये पर कमरा लेकर टिका है।
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कीचड़ से सोना निकालने की कला जिसे न्यारे का काम भी कहा जाता है, उन्हें पूर्वजों से मिली है। समूह के सदस्य शिवराम विहके ने बताया कि मध्यप्रदेश के सिंगरौली जनपद के रौंदी गांव के रहने वाले हैं। हमारे यहां आठ पीढि़यों से न्यारे का काम होता आ रहा है। समुदाय के पुरुष एवं महिलाएं इस कला को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने अभिभावकों से सीखते आ रहे हैं।
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छह से आठ लोगों का समूह एक साथ चलता है, जो पूरे महीने में 10 से 20 ग्राम कच्चा सोना इकट्ठा कर लेते हैं।इसे सुनार के पास बेचकर सदस्य उस रुपये को आपस में बांट लेते हैं। उन्होंने बताया कि एक सदस्य महीने में 10 हजार तक कमा लेता है। काम ठप होने पर सभी अपने गांव चले जाते हैं एवं वहां खेतीबारी भी कर लेते हैं।
ये लोग शादी-विवाह के मौसम में निकलते हैं। उस समय सुनारों के यहां काम बढ़ जाता है। नालियों में यह सोना जेवर निर्माण के समय कटाई-छिलाई एवं पिटाई के दौरान गिरता है। छोटे-छोटे कण के रूप में यह सोना दुकान के फर्श पर गिरता है जो सफाई के दौरान नाली में चला जाता है।
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सुनार पट्टी के समीप नालियों की पूरी गंदगी बोरियों में भर कर सोनाझारी समुदाय के लोग अपने ठिकाने ले जाते हैं और एक विशेष प्रकार के छन्नीनुमा बर्तन में रख कर फिर चूने के पानी से धोते हैं। नाइट्रिक एसिड आदि की सहायता से उससे सोने व चांदी को निकाल लेते हैं। यह प्रक्रिया समूह के एक दक्ष सदस्य के द्वारा की जाती है।

इन्होंने बताया कि ये वर्ष में तीन से चार बार यहां आते हैं। ये सुनार के दुकानों से नियारा (धूल गर्दा) भी खरीदते हैं। स्वर्ण व्यवसायी राजेश कुमार बबलू, रामशरण भदानी, रंजीत सोनार आदि लोगों ने बताया कि ये लोग काफी वर्षो से इस कार्यों में लगे हैं, यही इनका मुख्य पेशा है। यह काम बिना सीखे कोई नहीं कर सकता है।

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