'जीविका' बनी जीवन का आधार : महिलाएं बनीं मिसाल, जिंदगी बदली तो बदले हालात, अब औरों को भी दे रहीं रोजगार



अमृतेश, छपरा। सारण में लिस्ट लंबी है। पर, बात स्मृति कुमारी से शुरू करते हैं। दिघवारा के मलखाचौक की स्मृति जीविका से जुड़ने के पहले पूरी तरह से आर्थिक तंगी की शिकार थीं, लेकिन जीविका ने आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के साथ ही मुखर भी बना दिया है।
अपनी कहानी प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बताते हुए स्मृति कुमारी ने बताया कि जीविका से जुड़ने के पहले जिंदगी मुफलिसी में थी, लेकिन आज वह खुद दूसरों को रोजगार दे रही हैं। स्मिता जैसी सैकड़ों महिलाओं का जीवन जीविका से जुड़ने के बाद पूरी तरह से बदल गया है।

जीविका की सतत जीविकोपार्जन योजना के नोडल पदाधिकारी ने बताया कि सरकार देसी शराब एवं ताड़ी के उत्पादन एवं बिक्री में पारंपरिक रूप से जुड़े रहे अत्यंत निर्धन परिवार तथा अनुसूचित जाति, जनजाति की महिलाओं को लाभ दे रही है।



सारण जिले में सतत जीविकोपार्जन योजना अंतर्गत जीविका ग्राम संगठनों द्वारा अब तक 4720 अत्यंत निर्धन परिवारों का चयन किया जा चुका है। इस योजना के तहत अब तक 161 देसी शराब एवं 1342 ताड़ी के उत्पादन एवं बिक्री में पारंपरिक रूप से जुड़े रहे अत्यंत निर्धन परिवारों का चयन किया गया है।
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कुल 1976 अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लक्षित अत्यंत निर्धन परिवारों को एवं 1213 अन्य परिवारों को इस योजना से जोड़ा गया है। इतना ही नहीं जीविका ग्राम संगठनों के माध्यम से कुल 4520 अत्यंत निर्धन परिवारों को उत्पादक परिसंपत्ति हस्तांतरित किया गया है।
इन परिवारों को प्रशिक्षित कर सूक्ष्म व्यवसाय, गाय, बकरी एवं मुर्गी पालन तथा कृषि संबंधित गतिविधियोंं से जोड़ा गया है। इन परिवारों में से 323 परिवार गव्य एवं बकरी पालन, 4197 परिवार माइक्रो एंटरप्राइज का कार्य प्रारंभ भी कर चुकी हैं।
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जीविका से जुड़ने के पहले परिवार के लोग बैंक के बारे में भी नहीं जानते थे। अब पूरे परिवार का जीवन बीमा मैं करा चुकी हूं। जीविका से जुड़कर सिलाई मशीन खरीदी और रोजगार शुरू किया। आज बैग का व्यवसाय कर रही हूं। प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपये की आय हो रही है। चार लोगों को रोजगार भी दे रही हूं। - स्मिता कुमारी, मलखा चौक, दिघवारा
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गांव में सखी बैंक चलाकर घर बैठे रोजगार पा रही हूं। बैंक से प्रतिमाह दो से ढाई लाख रुपये का लेनदेन होता है। बैंकिंग कर आत्मनिर्भर बनने के साथ परिवार चलाने में पति का सहयोग भी कर रही हूं। - रानी गुप्ता, दिघवारा
जीविका से जुड़ने से पहले आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। वहां से मैंने 10 हजार रुपये लेकर गोलगप्पे का ठेला चलाया। उसके बाद फिर 20 हजार रुपये लेकर तिलकुट मुरब्बा व्यवसाय शुरू किया। इस पैसे को लौटाकर फिर 50 हजार रुपये लेकर आज किराने की दुकान चला रही हूं। - रेखा देवी, नगरा

जीविका समूह से जोड़कर ऊनी वस्त्र का कारोबार कर रही हूं। वर्तमान समय में सारण जिले के बाहर के बाजारों में भी हमारे बनाए गए सामान बेचे जा रहे हैं। गांव की अन्य महिलाओं को भी रोजगार दे रही हूं। - फरहान परवीन, सोनपुर


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