Oyster Mushroom: भूमिहीनों को समृद्धि की राह दिखा रहा ऑइस्टर मशरूम, लाखों में हो रही कमाई



सुपौल,  जागरण संवाददाता: बदलते समय के साथ-साथ किसानी का ट्रेंड बदला है। कल तक गेहूं धान की खेती तक सिमटकर रहने वाले किसानों ने हाल के दिनों में कई तरह के व्यवसायिक खेती को किसानी में शामिल किया है। बदलाव की इस बयार से कोसी के किसान भी अछूते नहीं रहे हैं। यहां के किसानों ने भी समय और परिवेश के साथ किसानी कार्यों में बदलाव किया है।

परंपरागत खेती के साथ-साथ मशरूम जैसे नगदी फसल को किसानी में शामिल किया है। इनमें वैसे किसान जो भूमिहीन हैं उन्होंने भी मशरूम की खेती को अपनाकर समृद्धि का द्वार खोल लिया है । किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ मशरूम खेती करके दोगुनी से ज्यादा का लाभ कमा रहे हैं। इधर कृषि विभाग भी इस खेती को बढ़ावा देने की दिशा में पहल कर रहा है। विभाग किसानों को अनुदान देने के साथ-साथ खेती के गुर भी बता रहा है।
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परिणाम है कि कोसी प्रभावित सुपौल जिले में मशरूम की खेती तेजी से पांव पसार रही है। वैसे तो यह खेती जिले में सालों भर की जाती है। परंतु जाड़े के मौसम में यहां मशरूम की खेती बहुतायत मात्रा में की जाती है। इस मौसम में लोग भी मशरूम खाना पसंद करते हैं। इससे किसानों की आय बढ़ जाती है। जिले में पिपरा ,बसंतपुर, त्रिवेणीगंज, छातापुर आदि प्रखंडों में यह खेती बहुतायत मात्रा में की जा रही है।
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पिपरा प्रखंड के रामनगर गांव में मशरूम की खेती करने वाले ऐसे ही किसान हैं राजेश गुप्ता। एक समय माली हालत अच्छी ना होने के चलते राजेश ने 20 हजार की लागत लगाकर मशरूम की खेती की थी। इस समय वह दो से तीन लाख लगाकर मशरूम की खेती कर रहे हैं और करीब एक लाख प्रतिमाह कमा रहे हैं ।
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वैसे तो राजेश यह खेती वर्ष के महज 5 से 6 महीने ही करते हैं। जिनसे वे वर्ष में करीब पांच लाख की कमाई कर लेते हैं। वैसे तो राजेश के पास अपनी जमीन है। इससे वे छप्पर से कई बंगले तैयार किए हैं और अंदर मशरूम की खेती कर रहे हैं । बंगले के अंदर बांस बल्लियों के सहारे मशरूम बोने के लिए बेड बनाए गए हैं। आज देखा-देखी इस गांव के करीब एक दर्जन लोग मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं।

बसंतपुर प्रखंड के बिशनपुर चौधरी निवासी पूनम देवी ने बताया कि भूमिहीन रहने के कारण मजदूरी कर अपने तथा अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। हमेशा तंगहाली की मार से ही जूझना पड़ता था। मगर जब से मशरूम की खेती करना शुरू किया तो खुशहाल की जिंदगी जीने लगी हूं। बताया कि 10 रुपए में 100 ग्राम मशरूम बीज और 10 रुपए के 3 किलोग्राम भूसा के अलावा पालिथीन 1 मीटर रस्सी 1 लीटर गर्म पानी की लागत में ढाई किलोग्राम मशरूम का उत्पादन होता है। जिसकी बाजार में कीमत 300 रुपये मिल जाते हैं।

उन्होंने बताया कि यह फसल भूमिहीन किसानों के लिए लाभप्रद है। अन्य फसलों की अपेक्षा मशरूम फसल किसानों के लिए अत्यधिक लाभप्रद है। इसकी खेती का विस्तार हो रहा है। मशरूम की खेती से किसानों की आर्थिक उन्नयन एवं जुड़े लोगों को रोजगार मिल रहा है।
बताया कि वह मशरूम की खेती साल भर करती है। खासकर जमीन नहीं रहने के कारण वह अपने घरों में ही ऑइस्टर मशरूम  उगाते हैं। बिक्री के बाद जो बच जाता है उसका वे सुखोता बना लेती है। सुखोता का बाजार मूल्य भी अधिक मिल जाता है और बर्बाद होने से भी बच जाता है। सुखोता खरीदने को ले व्यापारिक घर पर पहुंच जाते हैं। जिसका वे पापड़, अचार ,आदि तैयार कर ऊंचे भाव में बेच डालते हैं।

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